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________________ 155 चोबीश दमके पात्रीश धार. 11 एकज चतुर्दर्शन होय. 1 वनस्पतिनी परे दश दमकमां जश् उपजे. 12 अपर्याप्तावस्थाये कोइएकने मति अने 22 दश दंगकना जीव एमां श्रावी उपजे. श्रुत ए बे ज्ञान होय अने एज बे अ 23 एक नपुंसक वेद होय. झान पण होय, तथा पर्याप्तावस्थाये 24 अल्पबहुत्वमां पंचेंजिय तिर्यंचथकी बे तो बे अझानज होय. ज्यि जीव अधिक होय. 13 औदारिककाययोग, औदारिक मिश्र 25 नवन नथी. काययोग, कार्मणकाययोग अने अस 26 जघन्य एक समय अने उत्कृष्टो एक त्यअमृषा वचनयोग,ए चार योग होय. मुहुर्त विरहकाल होय. 14 कोशएक अपर्याप्ताने प्रथमनां बेझान, 27 एमां मिथ्यात्व अने सास्वादन ए बे बे अज्ञान अने अचकुर्दर्शन. ए पांच गुण गणां लाने. उपयोग होय, अने पर्याप्ताने बे शान 2G स्पर्शेजिय,रसें प्रिय,वचनबल, कायबल, होय, माटे त्रज उपयोग होय. श्वासोवास अने श्रायु. ए उ प्राण होय१५ एक समयमा जघन्य, एक, बेत्रण जी श्ए संयतीना आप नेद नारकीनी पेरे. व उपजे अने उत्कृष्टथी संख्याता अथ 30 सचित्तादिकत्रणे प्रकारनोआहार लीये. वा असंख्याता जीव आवी उपजे. 31 उजादिक त्रणे प्रकारे आहार लीये. 16 उपजवानी पेरे मरण पण जाणी लेवु. 32 जघन्य एक समय अने उत्कृष्टथी अं 17 श्रायुष्य श्राश्रयी जघन्य अंतर मुहुर्त तरमुहुर्ते थाहारनी श्वा उपजे. अने उत्कृष्टथी बार वर्षायु होय. 33 काय स्थिति संख्याता वर्षनी जाणवी. 17 मनःपर्याप्ति वर्जीने पांच पर्याप्ति होय. 34 बे लाख योनि जाणवी. रए उ दिशिनो आहार लीये. 35 सात लाख कोडी कुल जाणवां. 20 एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय. ... 17 हवे अढारमा त्री प्रियना दमके पांत्रीश द्वार कहे . 1 औदारिक, तैजस अने कार्मण. ए 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. त्रण शरीर होय. | कृष्ण, नील अने कापोत. ए त्रण 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग लेश्या होय. अने उत्कृष्टी त्रण गाउनी अवगाहना. | 7 स्पर्शे प्रिय रसेंजिय श्रने प्राणेजिय, ए 3 एकज व संघयण होय. त्रण इंजियो होय. 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. | ए प्रथमना त्रण समुद्घात होय. 5 एकज हुंडसंस्थान जाणवू. ..|10 सम्यक् अने मिथ्या, ए बे दृष्टि होय.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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