________________ 254 चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. तिर्यंच पंचेंजियनो अने एक मनुष्यनो. 7 कृष्ण, नील, कापोत अने तेजो. ए चार ए रीते दश दंडकने विषे जइ उपजे. लेश्या अपर्याप्ताने होय, अने पर्याप्ताने 22 नारकी वर्जिने बाकी त्रेवीश दंडकवा - पहेली त्रण लेश्या होय. ला जीवो, ए दंडकमां श्रावी उपजे. G एक स्पर्शेजियज होय. . 23 एक नपुंसक वेद होय. ए प्रथमना त्रण समुद्घात होय. 24 अल्पबहुत्वमां वायुकायथी वनस्पति 10 एकज मिथ्यादृष्टि होय. कायिया जीव अधिक बे. 11 एकज अचकुर्दर्शन होय. 25 नवन नथी. 12 मति अने श्रुत, ए बे अज्ञान होय. 26 विरहकाल नथी. 13 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका 27 एकज मिथ्यात्व गुणगणुं लाने. ययोग अने कार्मणकाययोग, ए त्रण 27 तेउकायनी पेरे चार प्राण होय. योग होय. शए संयतीना श्राप नेद नारकीनी पेरे. . . 14 तेउकायनी पेरे त्रण उपयोग होय. ३सचित्तादिकत्रण प्रकारनो श्राहार लीये. 15 एक समयमां अनंता जीव उपजे. |31 उज अने लोमे करी आहार लीये. 16 एक समयमां अनंता जीव च्यवे. 32 समय समय हारनी श्वा उपजे. 17 जघन्य अंतर मुहुर्त अने उत्कृष्ट दश 33 काय स्थिति प्रत्येक वनस्पति आश्रयी हजार वर्षायु होय. असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी 17 प्रथमनी चार पर्याप्ति होय. होय अने अनंतकाय आश्रयी अनंती रए त्रण, चार, पांच अथवा उदिशिनो उत्सर्पिणी ने अवसर्पिणी होय. थाहार लीये. 34 प्रत्येकनी दश लाख अने साधारणनी 20 दीर्घकालादिक संझा रहित होय. चौदलाख मली चोवीश लाखयोनि बे. 1 पांच स्थावरना,त्रण विकलेंजियना,एक 35 अव्यावीश लाख कोडी कुल जाणवां, 17 हवे सत्तरमा बे इंडियना दंडके पांत्रीश द्वार कहे बे.. 1 औदारिक, तैजस ने कार्मण, ए त्रण 5 एकज ढुंडसंस्थान जाणवू. शरीर होय. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. 2 अवगाहना जघन्य अंगुलनो असंख्यात 7 कृष्ण, नील अने कापोत, ए त्रण लेश्या. मो नाग उत्कृष्टी बार योजन होय. स्पर्शे प्रिय अने रसेंजिय,ए बे इंडियहोय. 3 एकज वहुं संघयण होय. | ए प्रथमना त्रण समुदघात होय. 4 संझा चार अथवा दश होय. | 10 सम्यक् अने मिथ्या, ए बे दृष्टि होय.