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________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश धार. 253 15 हवे पन्नरमा वायुकायना दमके पांत्रीश द्वार कहे जे. 1 औदारिक, वैक्रिय, तैजस अने कार्म| त्रण हजार वर्षायु होय. ण, ए चार शरीर होय. प्रथमनी चार पर्याप्ति होय. 2 जघन्योत्कृष्ट अवगाहना अंगुलनो अ १ए त्रण, चार, पांच अथवा ब दिशिनो संख्यातमो नाग होय. पण आहार लीये. 3 एकज बेवहुं संघयण होय. 20 दीर्घकालादिकी त्रणे संझा रहित होय. 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. 1 तेउकायनी पेरे नव दमकने विषे जाय. 5 हुँमसंस्थान,ध्वजा ने पताकाने श्राकारे. 22 पांच स्थावर, त्रण विकलेंजिय, पंचेंडि 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. __ य तिर्यंच अने मनुष्य, ए दश दंगक कृष्ण,नील ने कापोत,एत्रण लेश्या होय. वाला जीवो एमां आवी उपजे. एक स्पर्शेजिय होय. 23 वेदहारे एक नपुंसक वेद होय. ए प्रथमना चार समुद्रघात होय. 24 अल्पबहुत्वछारमा अपकायथकी वायु 10 एकज मिथ्यादृष्टि होय. ____ कायिया जीव अधिक बे. 11 एकज अचतुर्दर्शन होय. 25 ए दंडके नवन नथी. 15 मति अने श्रुत, ए बे अज्ञान होय. 26 विरहकाल नथी. 13 औदारिककाययोग, औदारिक मिश्र 27 एकज मिथ्यात्व गुणगणुं लाने. काययोग, वैक्रियकाययोग, वैक्रियमि 27 तेउकायनी पेरे चार प्राण होय. श्र काययोग अने कार्मणकाययोग. ए ए नारकीनी पेरे संयतीना आठ बोल बे. पांच योग होय. 30 सचित्तादिक त्रण प्रकारनो आहार लीये. 14 प्रथमनां बे अज्ञान अने एक अचहु 31 उज अने लोमे करी आहार लीये. दर्शन, ए त्रण उपयोग होय. 32 समय समय आहारनी श्छा उपजे. 15 एक समयमां असंख्याता उपजे. 33 कायस्थिति पृथिवीकायनी पेरे जाणवी. 16 एक समयमा असंख्याता च्यवे. 34 सात लाख जीवा योनि बे. 17 जघन्यथी अंतरमुहर्त अने उत्कृष्टुं 35 बार लाख कोमी कुल जाणवां. 16 हवे सोलमा वनस्पतिकायना दंडके पांत्रीश द्वार कहे . 1 औदारिक, तैजस श्रने कार्मण, एत्र रनी अवगाहना जाणवी. ण शरीर होय. 3 एकज जेवहुं संघयण होय. 5 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग उ 4 संझा चार अथवा दश होय. स्कृष्टी एक हजार योजन प्रमाण शरी 5 टुंडसंस्थान नाना प्रकारना श्राकारनुं.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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