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________________ 256 चोवीश दमकें पांत्रीश धार. 11 एकज चतुर्दर्शन होय. 24 अल्पबहुत्वमां बेंजियथकी तेंजियजीव 15 ज्ञान हींजियनी पेरे जाणी लेवु. - अधिक होय. 13 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका 25 नवन नथी. ययोग, कार्मणकाययोग, अने असत्य 26 जघन्य एक समय ने उत्कृष्टो एक मु अमृषा वचनयोग, ए चार योग होय. हर्त्त विरहकाल होय. 14 हींजियनी पेरे उपयोग जाणवा. प्रथमना बे गुणगणां लाने. 15 हींजियनी पेरे उपपात जाणवा.. स्पर्शेजिय, रसें जिय, घ्राणेंजिय, वचन 16 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणवू. बल, कायबल, श्वासोबास अने आयु, 17 जघन्य अंतरमुहुर्त अने उत्कृष्टुं उंगण ए सात प्राण होय. पचास दिवसायु जाणवू. ए संयतीना आठ नंग, नारकीनी पेरे. 17 मनःपर्याप्ति वर्जीने पांच पर्याप्ति होय. 30 सचित्तादिक त्रणेप्रकारनोपाहारलीये. रए ब दिशिनो आहार लीये. 31 उजादिक त्रणे प्रकारे आहार लीये. . . 20 एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय. 32 जघन्य एक समय अने उत्कृष्टथी एक वनस्पतिनी पेरे दश दमकमांजर उपजे. अंतरमुहर्ते श्राहारनी श्छा उपजे. श्श्दश दंमकवाला जीवो एमां श्रावी उपजे. 33 काय स्थिति संख्यातादिवसनी जाणवी. 23 एक नपुंसक वेद होय. 34 बे लाख योनि बे... 35 आठ लाख कोमि कुल जाणवां. रए हवे उंगणीशमा चरिंजियना दमके पांत्रीश द्वार कहे जे. 1 औदारिक, तैजस अने कार्मण, एत्र 10 सम्यक् अने मिथ्या, ए बे दृष्टि होय. ण शरीर होय. 21 चा ने अचछु, ए बे दर्शन होय. 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग श्र 12 ज्ञान, हींजियनी पेरे जाणी लेवं. ने उत्कृष्टी चार गाउनी अवगाहना. 13 औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रका 3 एकज बेवढं संघयण होय. ययोग, कार्मणकाययोग श्रने असत्य 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. | अमृषावचनयोग ए चार योग होय. 5 एकज हुंडसंस्थान जाणवं. 14 अपर्याप्ता लगे कोश्कने प्रथमनां बे 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. झान, बे अज्ञान अने बे दर्शन. ए बउ 7 कृष्ण, नील ने कापोत ए त्रण वेश्या. पयोग होय, अने पर्याप्ताने प्रथमनां स्पर्श,रस, घ्राणनेचकु,एचार इंजियोहोय. बे ज्ञान विना चार उपयोग होय. ए प्रथमना त्रण समुद्घात होय. 15 छींजियनी पेरे उपपात जाणवो.'
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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