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________________ चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. 157 .16 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणवू. 7 प्रथमनां बेज गुणागणां लाने. 17 जघन्य अंतरमुहर्त्त, उत्कृष्टुं मासायु. 27 स्पर्षे जिय, रसेजिय, घ्राणेंजिय, चक्षु 27 मनःपर्याप्ति वर्जीने पांच पर्याप्ति होय रिंजिय, वचनबल, कायबल, श्वासोत्रा १ए उ दिशिनो आहार लीये. | स अने आयु. ए आठ प्राण होय.' 20 एक हितोपदेशिकी संज्ञा होय. ए संयतीना आठ नंग नारकीनी पेरे बे. 21 वनस्पतिनी पेरे दश दंडकमां जाय. ३०सचित्तादिक त्रणे प्रकारनो आहारलीये. 22 एमां दश दंमकवालाजीवो श्रावी उपजे. 31 उजादिक त्रणे प्रकारे आहार लीये. 23 एक नपुंसक वेद होय. 32 जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट एक 24 अल्पबहुंत्वमा ज्योतिषी देवोथकी चौ अंतर मुहर्ते आहारनी श्छा उपजे. ___ रिंजिय जीव अधिक होय. 33 काय स्थिति संख्याता मासनी जाणवी. 25 नवन नथी. 34 बे लाख योनि . 26 जघन्य एक समय श्रमे उत्कृष्टो एक 35 नव लाख कोडी कुल जाणवां.. मुहूर्त्त विरहकाल होय. 20 हवे वीशमा पंचेंजिय तिर्यंचना दंझके पांत्रीश द्वार कहे . .. 1 संमूर्जिमने औदारिक, तैजस अने का उरःपरिसर्पनुं योजनपृथक्त्व, जुज प मण. ए त्रण शरीर होय. तथा गर्नज रिसर्पनुं गाउपृथक्त्व जाणवू. ने औदारिक, वैक्रिय, तैजस अने का 3 संमूर्छिमने एकज अवतुं संघयण होय. मण, ए चार शरीर होय. / श्रने गर्नजने बए संघयण होय. 2 जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो नाग 4 संज्ञा चार अथवा दश होय. अने उत्कृष्टो एक हजार योजन शरी 5 संमूर्छिमने एक हुंमसंस्थान अने ग र, तेमां गर्नज जलचरनुं हजार योज नजने उ ए संस्थान होय. ननु, स्थलचरनुं ब गठ, खेचरनुं धनुष्य 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. पृथक्त्व, उरःपरिसर्पनुं हजार योजन 7 संमूर्जिमने प्रथमनी त्रण लेश्या होय. अने नुजपरिसर्पनुं गाउ पृथक्त्व. तेमज अने गर्नजने बए लेश्या होय. उत्तर वैक्रियशरीर करे, तो नवशे यो इंजिय पांचे होय. जन प्रमाण जाणवू. तथा संमूर्बिममां ए संमूर्छिमने प्रथमना त्रण समुद्घात हो जलचरनु एक हजार योजन, स्थलचर य अने गर्नजने पांच समुद्घात होय. मुंगाउ पृथक्त्व, खेचरनुं धनुष्यपृथक्त्व, 10 सम्यक्त्वादिक त्रणे दृष्टि हाय.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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