________________ 15 चोवीश दंडकें पांत्रीश द्वार. 11 चक्षुर्दर्शन, अचगुर्दर्शन अने अवधि 3 खेचरनुं बहोतेर हजार वर्षायु. दर्शन, ए त्रण दर्शन होय. उरःपरिसर्पनुं पूर्वकोमी वर्षायु. 15 प्रथमनां त्रण झान अने त्रण अज्ञान 5 जुजपरिसर्पनुं पूर्वकोमी वर्षायु. मली ज्ञान होय. 17 संमूर्छिमने मनपर्याप्ति वर्जी बाकीनी पां 13 संमूर्छिमने औदारिककाययोग, औ च पर्याप्ति अने गर्नजने ब पर्याप्ति होय. दारिक मिश्रकाययोग, कार्मणकाययोग १ए उ दिशिनो आहार लीये. अने असत्यअमृषावचनयोग. ए चार 20 दीर्घकालादिकी त्रणे संज्ञा होय. योग होय. तथा गर्नजने मनना चार, 21 संमर्जिम.तिर्यंच तो एक ज्योतिषी तथा वचनना चार अने औदारिककाय बीजा वैमानिक,ए बे दंडक वर्जिने बाकी योग, औदारिक मिश्रकाय योग, वैकि नाबावीश दंडकमांजा जपजे अने गर्न यकाय योग, वैक्रिय मिश्रकाय योग, का जतिर्यंचतो चोवीश दंडकमांजइ उपजे. मणकाय योग. ए तेर योग होय. संमर्बिममां दश दंमकवाला जीवो. 14 संमूमिमा कोइएकने अपर्याप्तावस्था यावी उपजे अने गर्नजमां चोवीशे ये चौरिंजियनी पेरे उपयोग होय दंडकना जीवो श्रावी उपजे. अने पर्याप्तावस्थाये चार होय, ने ग 3 संममिने एक नपुंसकवेद होय अने नजने नारकाना पर नव उपयोग. गर्नजने त्रणे वेद होय. 15. हींडियनी पेरे उपपात जाणवो. अल्पबहत्त्वमां चौरिंजियजीवथकी पंचें 16 उपपातनी पेरे मरण जाणवं. जिय तिर्यंच जीव अधिक . 17 जघन्य अंतरमुहुर्त श्रायु होय अने उ 25 नवन नथी. स्कृष्टुं त्रण पथ्योपमायु होय. तेमां ग 26 संमूर्जिमने जघन्य एक समय अने जज तिर्यंचवें श्रायु आ प्रमाणे बे. उत्कृष्टो चोवीशमुहुर्त, तथा गर्नजने 1 जलचरनु पूर्वकोटि वर्षायु जाणवू, जघन्य एक समय अने उत्कृष्टो बार 5 खेचरनुं पट्योपमनो असंख्य नाग. मुहर्त विरहकाल जाणवो. 3 स्थलचरनुं त्रण पटयोपमायु. 7 संमूर्बिममां प्रथमनां बे गुणगणां 4 उरःपरिसर्प- पूर्वकोमी वर्षायु. लाने अने गर्जजमां प्रथमनां पांच गु 5 जुजपरिसर्पनुं पूर्वकोमी वर्षायु.संमू एगणां लाने. र्छिम पंचेंजिय तिर्यंचनुं श्रायु कहे जे. 27 संमूर्जिमने मन विना नव प्राण होय 1 जलचर- पूर्वकोमी वर्षायु. अने गर्नजने दशे प्राण होय. . 5 स्थलचरनुं चोराशी हजार वर्षायु. २ए संमूर्बिममा संयतीना आठ जंग ना