________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. एए अथ षष्ठ बाहा करण विधि प्रारंजः // हवे बहुं बाहकरण कहे . श्रा ठेकाणे बे धनुःपृष्टनो विश्लेष करीये, तिहां ददि प जरतार्ड अने वैताढ्यपर्वत ए बे धनुष्य , तेमां जे न्हा, धनुष्य होय ते महोटा धनुष्यमांथी काहामीये तेने विश्लेष कहीये,ते काहाडीने पनी जे शेष रहे, तेनुं थर्क करीये तेवारे वैताढ्य तथा हिमवंत प्रमुख पर्वतनी बाद थाय. बाद एटले पर्वतना तथा क्षेत्रना बेमानो विस्तार जाणवो, ते आवी रीतेः दक्षिणाई जरतनुं धनुःपृष्ट (ए७६६) योजननी उपर एक कला , अने वैताढ्य प तनुं धनुःपृष्टः (10743) योजनने पन्नर कला उपर बे, माटे वैताढ्यना धनुःपृष्टनी अ पेक्षाये दक्षिणाईनरतनुं लघु धनुःपृष्ठ कहेवाय, अने वैताढ्य, महा धनुःपृष्ठ कहेवाय, तेवारे महाधनुःपृष्ठनी राशिमांथी लघु धनुःपृष्टनी राशि बाद करीये, तो बाकी (एys) योजन उपर चौद कला रहे, तेनु अर्क करीये तेवारे () योजन उपर सामीशोल कला श्रावे. एटला योजन प्रमाण वैताढ्य पर्वतना बेहु तरफनी प्रत्येक एकेकी बाह जाणवी. एवी रीते हिमवंत महाहिमवंतादिक सर्व पर्वतोनी तथा हिमवंतादिक दे त्रोनी बाहनुं गणित स्वयमेव करी ले. अहिं मात्र एनो यंत्रज लखीये बैये. अथ बाहा करण यंत्रम् बाहा करवाना वैताढ्यादिकनुं जरता दिकनुं बेहुनो विश्लेषतेनुं अर्डकरतां जे स्थानकोनां नाम.महा धनुः पृष्ठ लघु धनुः पृष्ठ. करतां बाकी. श्रांक श्रावे, ते बाह. योजन. कला.योजन. कला. योजन. कला. योजन कला. 1 वैताढ्य पर्वत. 10743 15 ए७६६१ ए७७ 14 16 // 1 जरत देत्र. 14520 11 1743 15 34 15 ए 3 हिमवंतपर्वत. 25530 4 14520 11 1701 15 5350 15 // 4 हिमवंतक्षेत्र. 3740 10 25530 4 13510 6 6755 3 5 महाहिमवंतपर्वत 57273 10 340 10 1553 // ए७६ // 6 हरिवर्षदेत्र. 4016 ५७२ए३ 10 26722 13 133616 // 7 निषधपर्वत. 124346 ए 4016 440330 5 20165 // विदेहाई. 157213 26 // 124346 ए 33767 // 163 13 // // इति पृष्ठ वाहा करण विधियंत्रादि संपूर्णम् //