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________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. १२ए क्रमे सुवर्ण, अंकरत्न, रू', अने स्फाटिकरत्नना गोथूनादिक चार पर्वत , अने वि दिशिने विषे जे चार पर्वत 3 ते रत्नमय जाणवा. ए श्राउ पर्वत जंब्रहीपनी दिशा तरफ एदए योजननी उपर एक योजनना पचाएं जाग करीये, तेवा चालीश नाग अधिक एटला पाणीनी उपर देखाय , अने मां ली लवण समुपनी शिखानी दिशिथी जोतां ए६३ योजननी उपर एकयोजनना पंचा णुं नाग करीये, तेवा (33) जाग जेटला पाणीनी उपर देखाय बे. लवणसमुन मध्ये पंचाएं हजार योजने जतां सातशे योजननी जलवृद्धिबे. तो बहेंतालीश हजार योजन जश्ये, त्यां वेलंधर पर्वत , ते स्थानके केटली जलवृद्धि होय ? ते जाणवानी रीति बतावे . श्राहींयां प्रथम श्रेणि पंचाणुं हजारनी, बीजी सातशेनी, अनेत्रीजी श्रेणी बेहेतालीश हजारनी, एवी अांकनी त्रण श्रेणि मांगीये, ए त्रण श्रांकनी राशि मांड्या पळी ते राशि “एणमजिस ए" गाथाना विधिये ग णीये, ते आवी रीते के वचमांनी जे सातशेनी श्रेणि तेने डेली बहेंतालीश हजारनी श्रेणीये गुणीये, तेवारे बे क्रोम ने चोराणुं लाख थाय. पठी पहेली श्रेणी जे पंचाएं हजारनी , तेनी साथे जाग वेहेंचीये, तेवारे त्रणशे ने नव योजन उपर एक योज नना पंचाणुं नाग करीये, तेवा पीस्तालीश लाग आवे, ए रीते संनूतले जंबूहीपे जो तां बहेंतालीश हजार योजने एटली जलवृद्धि होय. अने पंचाएं हजार योजने एक हजार योजन लवण समुख जंडो ने, तो बहेताली श हजार योजने केटलो जंमो ? तेनुं गणित आवीरीते करवू, के बहेंतालीश हजार योजनने हजारने के गुणीये, तेवारे चारकोमीने वीश लाख थाय. तेने पंचाएं ह जार नागे वेहेंचीये, तेवारे चारशे ने बहेंतालीश योजन उपर एक योजनना पंचाएं जाग करीये, तेवा दश नाग श्रावे. एटलो समुफ जंडो , पठी जलवृद्धि तथा उमपणुं ए बे एकगं करीये तेवारे सातशे ने एकावन्न योजन उपर एक योजनना पंचाणुं नाग करिये, तेवा पंचावन नाग थाय, ते सतरशे ने एकवीश योजन वेलंधर पर्वतर्नु उंचप [ डे, तेमांहेथी बाद करीये तेवारे नवशे उंगणोतेर योजन, श्रने उपर पंचाणुा चा लीश लाग रहे. एटलो जंबूहीपथी जतां वेलंधर पर्वत पाणीथी उंचो बे. हवे त्यां पर्वतनो विस्तार केटलो ? ते आणवानो विधि कहे . जलवृद्धि अने उमपणुं ए बे सातशे एकावन योजन उपर पंचाणुया पंचावन नाग , ते सर्वना पं चाणुश्रा नाग करीये, तेवारे एकोतेर हजारने चारशे नाग थाय, पठी “विचारफुगविसे सो” ए करण गाथाये करतां पर्वतनो मूल विस्तार एक हजार ने बावीश योजन ,
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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