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________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. 271 2 नवनपतिनी नागकुमारादिक नव निकायना धरणी अने जूतानंदें श्रादिक अढार इंडोने प्रत्येके बब अग्रमहीषी होय. 3 व्यंतर देवोना काल महाकालादिक बत्रीश इंडोनेप्रत्येके चार चार अग्रमहीषीहोय 5 ज्योतिषीना इंस जे चंडमा अने सूर्य, तेने प्रत्येके चार चार अग्रमहीषीयो होय. 5 सौधर्म तथा ईशान,ए बे देवलोकना इस्रोने प्रत्येके श्राप आठ अग्रमहीषीयोहोय. 6 बे देवलोकथी उपरांतना देवलोकमां देवीयोनी बत्पत्ति नथी माटे तिहांना इंस तथा तिहांना निवासी देवोने जेवारे विषय सेववानी वांबा थाय, तेवारे सौधर्म ईशानवासी अपरिग्रहीता देवीयो यथायोग्य पणे तेमने उपनोगमा श्रावे. हवे वैमानिक देवोनुं प्रतरे प्रतरे जूएंजूई आयु कहेवा माटे प्रतरसंख्या कडेले. तिहां जेम घरनी उपर जूदा जूदा चार पांच मजला होय, तेम पहेला अने बीजा देव लोकनी उपराउपर तेर नूमिरूप तेर मजला , तेने प्रतर कहीये. ते आवी रीते केःबे देवलोक मल्यां वलयाकारे जे. तिहां पूर्वमहाविदेह अने पश्चिम महाविदेहनी उपर श्रावेली देवलोकसंबंधी नूमिनी वचमाहेश्रवलयाकार खंमथकी एक दक्षिण दिशिखंग अने बीजो उत्तर दिशिखंग, एवा बे खंड अर्कोअर्स करीये, तेनां दक्षिण दिशिखंडना अवलयाकार खग प्रतर सौधर्मेजना अने उत्तरदिशिना अवलयाकार खंड प्रतर 6 शानेंना जाणवा. एम बीजा पण वलयाकार देवलोकना युगलमां एज व्यवस्था क रवी. एटले त्रीजा, चोथा, देवलोकना मट्या वलयाकार बार प्रतर , तेमां दक्षिण दिशि सनत्कुमारनी अने उत्तरदिशि माहेंजनी जाणवी. पांचमे उ प्रतर, बहे पांच प्र तर, सातमे चार प्रतर, आठमे चार प्रतर, नवमा दशमा मली बेहुना चार प्रतर, अ गीयारमा बारमाना चार प्रतर, तथा नव ग्रैवेयके प्रत्येक एकेक प्रतर गणतां नवप्रतर , अने पांच अनुत्तरविमाननो एकज प्रतर जे. एम सर्व मली ऊर्ध्वलोके बासठ प्रतर बे. हवे ए प्रत्येक प्रतरे जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य जाणवां, माटे प्रथम सौधर्मदेवलोके उ पाय कहे . सौधर्मदेवलोके उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपमनी ने अने प्रतर तेर बे, माटे एक सागरना तेर नाग करी प्रतरे प्रतरे एकेका सागरोपमे एकेको नाग श्रापीये, ते एवी रीते के तेरैया बे सागरोपमना बबीश नाग थाय, तेने प्रतरे प्रतरे वहेंचीये, तो प हेला प्रतरे तेरैया बे लाग श्रावे, तेटर्बु पहेला प्रतरे उत्कृष्टायु जाणवू. पली बीजे प्रत रे बे साथे गुणीये, तेवारे बीजे प्रतरे चार जाग, श्रीजे त्रणथी गुणीये तेवारे ब नाग, एम यावत् तेरमे प्रतरे बेहु सागरना बबीशे जाग पूर्ण थाय. तिहां उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपम पूर्ण थाय. एम ईशानदेवलोके पण प्रतरे प्रतरे एज जाग जोजेरा कहेवा.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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