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________________ अढीछीपना नकशानी दकीगत. 3 हवे ऐरवतदेवनी वक्तव्यता कहे . उत्तरदिशिना लवणसमुन्नी दक्षिण दिशे ऐरवत नामे देव , एने विषे तुंग वृद तथा कांटा नरतदेवनी पेरे घणा , तथा एनी बीजी पण सर्व वक्तव्यता नर तदेवनी पेरे जाणवी. परंतु एवं विशेष जे हां ऐरवत नामे चक्रवर्ती जाणवो अ ने जरतदेत्रने विषे नरत नामे चक्रवर्ती कहेवो. तथा श्हां ऐरवत नामे देवता वसे , तेथी एनुं ऐरवत एवं शाश्वतुं नाम . हवे ए जरत अने ऐरवत क्षेत्रने विषे कालचक्रतुं स्वरूप कहे . जरत तथा ऐरवत क्षेत्रमांहे उ आरे करीअवसर्पिणी अने व आरे करी उत्सप्पिणी रूप वार श्रारानुं कालचक्र . ते सदा काल अनादि अनंत पणे अनुक्रमे ब्रमण करे . हवे ए वार श्रारानां नाम कहे. प्रथम सुखम सुखमा, बीजो सुखमा, त्रीजो सु खम मुखमा, चोथो मुखम सुरूमा, पांचमो मुखमा, बहो मुखम मुखमा ए श्रारा बे, ते अवसप्पिणी कालनेविषे अनुक्रमे प्रथम सुखम सुखमाथी गणीये अने उत्सप्पिणी काले अवला गणीये एटले मुखम मुखमाश्री धुर मांडी गणीए. एम बार बारा चडता प डता जाणवा. ए चक्रनी पेठे फिरता आवे माटे एने कालचक्र कहीए. एमां अवस प्पिणी ते घटतो घटतो काल जाणवो अने उत्सर्पिणी ते चढतो चढतो काल जाणवो. हवे ए आराना कालनुं प्रमाण कहे . पहेलो आरो चार कोमाकोमी सागरनो, वी जो आरोत्रण कोमाकोमी सागरनो, त्रीजो आरो बे कोडाकोडी सागरनो, ए त्रण आ राने विपे अनुक्रमे करी मनुष्योनां आयुष्य कहे ः-प्रथम आरे त्रण पथ्योपमनु,तथा बीजे आरे बे पढ्योपम, त्रीजे आरे एक पट्योपमनुं, ए रीते मनुष्यनुं आयुष्य जा ण. हवे शरीरनुं मान कहे . प्रथम आराने विषेत्रण कोश ऊंचा मनुष्यनां शरीर होय, अने बीजे वारे वे कोश, त्रीजे आरे एक कोश, ए शरीरनुं जंचपणुं जाणवू. हवे ए त्रण श्राराने विषे मनुष्योने जे आहारनी श्छा थाय , ते कहे:-पहेला आ राने विपे चोथे दिवसे तुअर प्रमाणे आहारनी वांडा थाय,अने बीजे आरे त्रीजे दिवसे बोर प्रमाणे आहारनी वांठा थाय. तथा जीजे आरे एकांतरे आमला प्रमाणे आहारनी वांगा थाय. हवे शरीरने विषे पांसलीनी संख्या कहे. प्रथम श्रारामांहे बशेने बप्पन्न पिठकरंग एटले पांसली होय, अने वीजे आरे ते पूर्वोक्त पांसली- अर्ड एटले एकशोने यहावीश पांसली होय, तथा त्रीजे आरे वली तेनुं अर्ड एटले चोशठ पांसली होय. हवे ए त्रण श्राराने विपे अपत्य पालना कहे. प्रथम श्राराने विषे युगलने प्रसव्या पठी गणपचास दिवस सुधी अपत्य एटले गेरु युगल तेहनी प्रतिपालना करे, तथा
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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