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________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. महाहिमवे॥३६॥ बगवन्नसहस अहार,कोमि बासहि लक गुणतीसंसहसानव सयएगु, णसीइनिसहस्स घणगणियं // 37 // इति घनगणितसंग्रहगाथा // इति जंबूद्विपाधिकारः॥ हवे लवणसमुनो अधिकार कहे जे. जेम गाय पाणी पीवाने तलावमा प्रवेश करे, तेवारे तेनी पाउली बाजु उंची होय, अने आगली बाजु नीची होय तेने गोतीर्थ कहीये, तेम लवण समुजमाहे पण एक जंबूछीपनी जगतीथकी अने बीजो पहेली तरफथी लवणसमुनी जगती थकी एम बे पासाथी नीकलीने वचमां पंचाj पंचाएं हजार योजन सुधी पाबली नूमि ऊंची अने आगलीनूमि नीची बे, जगतीथकी लवणसमुपनी दिग्माल तरफ जातां थोडी थोडी जलवृद्धि थतां ज्यां पंचाएं हजार योजन थाय बे, त्यां समनूतलयकी सातशे योजन पाणीनी उंची वृधिबे, अने एक हजार योजन पाणी जंडं बे. नीचे तथा उपर दश हजार योजन पहोली अने मूलथकी सत्तर हजार योजन उंची, एवी लवणसमुनी मध्यमां पाणीनी शिखा , तेनी उपर वे गाउ ऊंची पाणी नी वेल ते एक अहोरात्रमा बे वखत वधे बे. लवणसमुने विषे वचमां पाणीनी मेखलाये चार दिशिने विषे वज्रमय चार पाताल कलशा , ते कलशानी एक हजार योजन ठीकरी जामी ने तथा नीचे अने उपर दश हजार योजन पहोला , अने वचमा एक लाख योजन- पेट पहोलु डे तथा ते कलशा एक लाख योजन नूमिमांहे जंमा . ते चारे पूर्व दिशिथी दक्षिणावर्त्त गणतां एक व डवामुख, वीजो केयूप, त्रीजो यूप, चोथो ईश्वर, ए चार नामे चार कलशा जाणवा. हवे जंबूछीपथकी पंचाऐ हजार योजन जातां लवणसमुना दश हजार योजन विस्तारवाली पाणीनी शिखा आवे, तिहां बे लाख, नेवं हजार योजन विष्कंन ने तेनो वर्ग करी ते वर्गने दशे गुणतां जे राशि आवे. तेनुं मूल शोधीये. तेवारे (ए१७०६०) योजन मध्यपरिधि थाय. तेमांथी चार दिशाना चार कलशे चालीश हजार योजन रुं ध्या बे, ते बाद करतां बाकी (7060) योजन रहे, तेने चारे नागे वहेचतां 1965 योजन थाय, एटबुं एकेकी दिशिना महोटा कलशनुं माहोमांहे अंतर थाय, ते अंतरना योजनमांहे वली एकेकी दिशाये नव नव श्रेणी न्हाना पाताल कलशोनी बे, तेणे (215000 ) योजन रुंध्या , अने (4265 ) योजन ते कलशनी ठीकरीने जामपणे संध्या ने. तिहा प्रथम श्रेणिमा 215 बीजीमां 16 त्रीजोमां 17 एम कके को कलश वधारतां यावत् नवमी श्रेणिमा (253) कलशा बे, ते नव श्रेणिनो सरवालो करतां (रए७१) कलशा एक दिशिना अंतरने विषे , तेवी चार दिशिना कलश मेल
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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