________________ 224 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो.. 73 महोटुं कार्य आरंजीने पनी न्हानुं क 75 सर्वजीवने पोता सरखा जाणी कोइने रीये तो लोकमां हांसी थाय. उहवीये नही राग रोष आणीये नही. 4 न्हानुं कार्य प्रारंजीने पड़ी तेने महीटुं 76 एप्रमाणे वर्तनारो पुरुष क्यारे पुःखीन करीये तो लोकमांहे प्रशंसा थाय. / थाय आवटे कमें छेदी मोद जाय इति // ॥अथ अष्टनंगी प्रारंजः॥ 1 सुदेव, सुगुरु अने सुधर्म, ए त्रण तत्त्वनुं स्वरूप न जाणे अने साधुधर्म तथा श्रावक धर्म ए बे मांहेलो को धर्म न श्रादरे अने पच्चरकाण जिनमत अनुष्ठान न पाले ए प्रथम नांगो जाणवो एनो स्वामी सकल लोकवासी मिथ्यात्वी जाणवो. 2 जिनतत्त्व न जाणे अने साधु धर्म तथा श्रावक धर्म आदरे अने अज्ञानकष्ट मास दमणादिक पञ्चरकाण पाले ए बीजो जांगो बाल तपस्वी तापसादिकनो जाणवो. 3 ज्ञानतत्व न जाणे अने बेहु धर्ममांहेलो एक धर्म श्रादरे पण यथास्थित साधुधर्म मार्ग न पाले प्रतीत न आणे ए न जाणे, न आदरे अने न पाले, एवो त्रीजो नां गो सर्व पासघा, कुशीलीया, संशक्त इत्यादिक जव्य तथा अजव्यादिकनो जाणवो. 4 जिनमत स्वरूप न जाणे तथा वली साधु धर्म आदरे वली यथाबंद पणे साधु मार्गने पाले ए न जाणे,आदरे अने पाले एवो चोथो नांगो उत्सूत्र प्ररूपक अगीतार्थनो ने. 5 धर्मना स्वरूपने जाणे, पण नियमना जयने लीधे बेहु धर्म मांहेलो एके धर्म न थादरे अने व्रत पच्चरकाण पण पाले नही ए जाणे, न आदरे, अने न पाले एवो पांचमो नांगो श्रेणिक, सात्यकी अने श्रीकृष्ण प्रमुख सम्य दृष्टियोनो जाणवो 6 धर्मना स्वरूपने जाणे पण बेहुमांहेलो एके धर्म श्रादरे नही, परंतु नववाम सहित शील प्रमुख पाले ए हो नांगो अनुत्तर विमानवासी देवादिकनो जाणवो. 7 जिनधर्मना स्वरूपने विशद रीते जाणे अने बेहु धर्ममांहेला एक धर्मने आदरे परंतु निसावरणीय कर्मोदये करी पाली शके नही सातमो नांगो संविज्ञपदीनो जाणवो. जिनधर्ममां अत्यंत कुशल थको धर्मस्वरूपने जाणे अने आदरे तेमज जिनोक्तधर्म यथास्थित पणे पाले ए जाणे, आदरे अने पाले एवो श्रापमो नांगो साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका रूप चतुर्विध श्रीसंघनो जाणवो. ए श्रावनांगामा प्रथमना चार जांगा मिथ्यादृष्टीना जाणवा अने पाउला चार नांगा सम्यक्दृष्टिनांडे तेमांपांचमो बहो नांगो अविरति सम्यकदृष्टीनो अने सातमो नांगो देश विरतिनो जाणवो तथााउमो नांगो देशविरति अने सर्व विरति बेहुनो जाणवो ॥इति।