SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. 131 मे जागे एक विजय, परिमाण जंगणीश हजार, सातशें ने सवाचोराणुं योजन थाय. तथा ए पुष्कराई छीपने विषे, बाहेरनी दिशाये जेनां पाणी वहे , एवी जे नदी तेनी नजीक को समुज नथी, तेमाटे मानुषोत्तरने हेठे मूलमा पेसे बे. ____ए पुष्कराईने विषे बन्ने उत्तर कुरुक्षेत्रमाहे पद्म अने महापद्म एवे नामे बे वृद बे, तेने विषे पद्म तथा पुंमरीक एवे नामे बे देवता रहे डे, श्रने देव कुरुक्षेत्रने विषे तो जंबूछीपनी पेरे गरुमदेवने वसवायोग्य बे शाल्मलीनां वृदो . ___ पुष्करार्क क्षेत्रने विषे पूर्व पश्चिम दिशाना बन्ने खंगमांहे बे हजार योजन पहो ला एवा बे कूट कह्या बे, ते कूटनां स्थानक गीतार्थ ज्ञानवंत होय ते जाणे. हवे मनुष्यदेवमांहे सर्व पर्वतनी संख्या कहे जे.. एक मेरु, उ कुलगिरि, चार गजदंता, सोल वनस्कार, चोत्रीश लांबा वैताढ्य, चार वृत्त वैताढ्य, चार यमलगिरि, अने बशे कांचन गिरि. ए सर्व मली बशे ने उंगण्योतेर पर्वत जंबूद्वीपमाहे जाणवा. अने श्राउ पर्वत लवणसमुषमांहे बे, बीजा धातकीखंग मांहे जंबूहीपना बर्श ने उंगण्योतेरने बमणा करीने बे खुकार पर्वत नेलीये, तेवारे पांचशे ने चालीश थाय. अने त्रीजा पुष्कराईने विषे पण पांचशे ने चालीश पर्वत जाणवा. एम तेरशो ने सत्तावन पर्वत सर्व मलीने मनुष्य क्षेत्रमाहे जाणवा, तेमां पांच मेरुपर्वत विना सर्व पर्वतो उंचपणाने चोथे जागे नूमिमांहे जाणवा. अने मानु षोत्तर पर्वत पण एज रीते जंचपणांने चोथे नागे नूमिमांहे बे. पुष्करा: छीपना श्रादि, मध्य श्रने अंत्यना त्रण परिधि कहे बे. प्रथम जे ध्रुवांकनी श्रेणी कही बे, तेमाहेत्रण लाख, पंचावन हजार, बशे ने चोराशी एटला योजन जेवारे त्रणे परिधिमांहे मेलवीये, तेवारे अनुक्रमे पुष्कराईना त्रण परिधि होय, ते संख्या यंत्रथकी जाणवी // उक्तं च // अडाश्दीव 3 समु, द रूव तप्परिहिं जोय णिग कोमी॥बायाल लक तीसं,सहसा दोसय गुणवन्ना ॥१॥सोलस कोमी लरका, नव को डिसयातिको डि ग लरक // पणवीस सहस्सासे, गणियपयं पुणसु करणेहिं // 2 // हवे मनुष्यदेत्र बाहेर जे पदार्थ न होय, ते कहे . नदी, अह, मेघ, मेघनो गर्जारव, बादर अग्नि काय, तीर्थकर, बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती अने बीजा पण सामान्य मनुष्य तेना जन्म अने मरण तथा मुहूर्त, प्रहर, दिवस, चं सूर्यनां परिवेष, विजली, चय, अपचय अने उपराग, एटला पदार्थ पी स्तालीश लाख योजन प्रमाण मनुष्यदेत्रमाहे होय. पण बाहेर न होय. एवं नरदे त्रना वनावनुं विशेष जाणवू // इति पंचमोऽधिकारः // 5 //
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy