SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. .. १६ए लोकमांहें चरे ,लमे अने ११५१नुं योजन अलीकथी उरहां एटले चारे दिशाये लोक ना हमाथकी 1121 योजनमांदेली कोरे अलोकनी अबाधायेज्योतिषचक्र स्थिर रहे. हवे सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र अने तारा, ए पांच जातिना ज्योतिषी देव देवीयोनुं ज घन्योत्कृष्टायु कहे बे. ते ज्योतिषी देवो अढी छीपमाहे जेटला , ते सर्व चर ,अने अढीवीपथी बाहिर जे असंख्याता द्वीप समुड बे, तेमां जेटला ज्योतिषीदेवो बे, ते सर्व स्थिर जाणवा.ए चर तथा स्थिर, बेहु प्रकारना ज्योतिषी देव तथादेवीनुं आयु कहे 1 चंद्रमानुं तथा चंद्रमाना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु एक पल्योपम एक लाख वर्षे अधिक तथा तेमनी देवीयो- अर्बपल्योपम पच्चास हजार वर्षे अधिक जाणवं. 5 सूर्य तथा तेना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु एक पक्ष्योपम एक हजारवर्षे अ धिक तथा तेमनी देवीयोनुं आयु पांचशे वर्षे अधिक अपव्योपम जाणवू. 3 ग्रह तथा ग्रहना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु संपूर्ण एक पक्ष्योपम जाणवू तथा तेमनी देवीयोनुं उत्कृष्टायु अर्डपल्योमनुं जाणवू. 4 नक्षत्र तथा नक्षत्रना विमानवासी देवोन उत्कृष्टायु अर्डपल्योपम अने तेमनी . देवीयोनुं आयु एक पख्योपमनो चोथो नाग जाणवू. . 5 तारा तथा ताराना विमानवासी देवो, उत्कृष्टायु पथ्योपमनो चोथो नाग कांश्क जाजेलं अने तेमनी देवीयो, एक पट्योपमनो श्राठमो नाग विशेषाधिक जाणवू. 6 जघन्यायुमां चंजमा अने सूर्य,ए बेतोड ,तथा ग्रह नक्षत्र अने तारा,ए त्रण वि मानना धणी ने तेमनुं आयु जघन्य मध्यम न होय परंतु उत्कृष्टज होय, तेथी चं जना विमानवासी देव तथा देवीयो एक युगल तथा सूर्यना विमानवासी देव तथा देवीयो ए बीजुं युगल, तथा ग्रहना विमानवासी देव तथा देवीयो. ए त्रीजुं युगल,तथा नक्षत्रना विमानवासी देव तथा देवीयो.ए चोथु युगल. ए चार युगलनुं जघन्यायु पट्योपमनो चोथो.जाग तथा ताराना विमानवासी देव तथा देवीयो. ए पांचमुं युगल बे,तेनुं श्रायु पस्योपमनो आठमो नाग जाणवू एना यंत्रो श्रागल श्रावशे हवे वैमानिकदेवोर्नु जघन्य तथा उत्कृष्टायु कहे . 1 सौधर्मदेवलोकने देहला तेरमे प्रतरें उत्कृष्टायु बे सागरोपमनं जाणवु अने जघ न्यथी तो सर्व तेरे प्रतरे एक पक्ष्योपमायु जाणवू. 2 ईशान देवलोके उत्कृष्ट बे सागरोपम पट्योपमना असंख्यातमे जागे अधिक अ ने जघन्यथी पढ्योपमने असंख्यातमे नागे अधिक, एक पख्योपम जाणवू. 3 सनत्कुमारे उत्कृष्ट सात सागरोपम अने जघन्य बे सागरोपम जाणवू.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy