SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अढीहीपना नकशानी हकीगत. 35 वा प्रकारनी शुज करणी करेले तेनो अधिकार श्रीजीवानिगम सूत्रमा सविस्तर ल खेलो तिहांथी जाणी लेवो ए जंबूछीपनां प्रथम हारनो अधिकार संदेपथी कह्यो. हवे विजयंत नामा वीजा छारनो अधिकार कहेजेः-मेरु पर्वतने दहण दिसे पीस्ता लीश हजार योजन वेगलूं जंबहीपनी दक्षण दिसिने अंते विजयंत नामे बीजं छार तेनो अधिकार सर्वे विजयहारनी परे जाणवो, परंतु एटबुं विशेष जे एनो अधिकारी विजयंत नामे देवता तेनी राजधानी दक्षण दिसे विजया राज्यधानी जेवी बे. हवे जयंत नामा त्रीजा छारनो अधिकार कहे:-मेरू पर्वतनी पश्चिमदिसे पीस्त लीश हजार योजन वेगवं जंबूहीपने पश्चिम दिसिने अंते सीतोदा महानदीनी उपरे जयंत नामे त्रीजुं हार तेनो अधिकार पण विजयहार सरखो जाणवो. शहां जयंतनामे देवता तेनी राजधानी पश्चिम दिसे विजयराजधानीनां सरखी जाणवी. हवे चोथु अपराजित नामे छार कहेजेः-मेरू पर्वतने उत्तर दिसे पीस्तालीश हजार योजन वेगलुं जंबछीपनी उत्तर दिसीने अंते अपराजितनामे चोथं हार कडं ते वि जयहार सरखं जाणवू इहां अपराजित देवता तेनी राजधानी पूर्वोक्त छीपनी उत्तर दिसे विजयराजधानी सरखी जाणवी. ए चारे दरवाजानां चारे देवतानी राजधानी अहीथी असंख्यातमे जंबूहीपे चार दिसाये जाणवी. ए चारे दरवाजानां स्वामी तथा सामानिक देवता तेनुं आयु एक पट्योपमनुं जाणवू. इति हार वर्णन समाप्त. // श्रथ नरतदेत्र वर्णन प्रारंज // __ हवे ए जंबूछीपमां नरतदेव नामे वर्ष (वास) कया स्थानके ते कडे चुलहेम वंत नामे वर्षधर पर्वत तेथकी दक्षिण दिसे अने दक्षण दिसे जे लवण समुफ तेथकी उ त्तर दिसे तथा पूर्व दिसे जे लवण समुफ तेथ की पश्चिम दिसे अने पश्चिम दिसे जे लवण समुज तेनी पूर्वदिसे ए अवकासने वच्चे जंबूछीपने विषे जरतनामे क्षेत्र जेने विषेशूका वृक्षना ग घणाने तथा बोरमी बावल प्रमुखनां कांटा घणा तथा जंची नीची विष मनूमि घणी ने तथा पुर्गमस्थानक घणा, पर्वत घणाले, नैरवजाप घणा, पाणीना प्रपात घणा, पाणीना निझारणा घणाले, खाम घणीने, गुफा, नदी, अह, रूंख, गुला, गुल्म, नवमालिका प्रमुख पद्मलतादि वेलमी, कोहली, अटवी, उजाम, स्वापद हिंसक जीव व्याघ्रादिक, चोर, तस्कर, स्वदेशथी उपना उपप्रव, परकटकनां करेलां उपज्व, उर्लिद, निदाचरने निदाउर्लन मले, फुकाल, पाखंमी जिनमार्गना उबापक, कृपण, खोनी, सातति, इत्यादिक सर्व वाना जाणवां तथा राजा पण लोकने बहु उःखना देनार, रोग घणा, संक्वेष घणा, वारंवार संदोज, दम, श्राकराकर प्रमुख घणाले.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy