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________________ अढीछीपना नकशानी हकीगत. चाशी हजार ने बावीश योजन , तेनो परिधि पांच लाख पंचाशी हजार ने एकाएं योजन थाय, ते मांडेथी आठ वेलंधरनो विष्कंन आठ हजार एकसो ने बहोंतेर योजन बाद करिये, तेवारे पांच लाख होंतेर हजार नवशे ने पन्नर योजन बाकी रहे; तेने श्रा नागे वेहेंचीये, तेवारे बहोंतेर हजार एकशो ने चउद योजन उपर एक योजनना तेर नाग करिये, तेवा श्राउ नाग एटबुं प्रत्येक वेलंधर पर्वतने वचे अंतर जाणवू // 21 // हवे उप्पन्न अंतरछीपनी विवदा करे . हेमवंत पर्वतना बन्ने माने विषे समुअमांहे बेबे दाढा विदिशिने विषे नीकली बे, ते प्रत्येक दाढाने विषे सात सात अंतरछीप, ते अंतरछीपमांहे पहेला चार अंतरछीप जगतीथकी त्रण योजन पूर , तो तेनो विस्तार पण एकेक अंतरछीप नो त्रणशे योजन प्रमाणे जाणवो. बीजुं चतुष्क जगतीथकी चारशे योजन पूर बे, तो तेनो विस्तार पण चारशे योजन बे, एम सर्वने विषे एकशो योजननी वृद्धि करतां सातमुं अंतरछीपनुं चतुष्क जगतीथकी नवशे योजन पूर , ते एकेकानो विस्तार पण नवशे योजन प्रमाण बे. ते यंत्रथी जाणवो. हवे ए अंतरछीप, पाणी उपर केटला ऊंचा ? ते कहे . अंतरछीपनुं पहेलु चतुष्क ते बाहेर जंबूछीपनी दिशाये अढी योजन उपर पंचाj था वीश नाग एटबुं पाणीथी उपर उंचं जाणवू, बीजा अंतरछीपोनां न चतुष्क बढी योजन उपर पंचाणुश्रा नेवू नाग पाणीथी उंचा जाणवा, अने लवणसमुज्नी शिखानी दिशिये बे कोश प्रमाण सर्वछीपनो प्रकाश जाणवो. ते यंत्रमांहे लख्यो // 13 // हवे अंतरछीपना नाम कहे बे. सर्व अंतरछीप, वेदिका अने वनखंडे करी मंमित जाणवा. अंतरछीपना पहेला च तुष्कने विषे ईशान कूणथी दक्षिणावर्त्त गणतां एक रुचक, बीजुं जासिक, त्रीजुं वैषा णिक, चोथु लांगुलिक ए चार नाम अनुक्रमे जाणवां. अंतरछीपना बीजा चतुष्कने विषे हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण अने शत्कुलीकर्ण, एवां नाम जाणवां.त्रीजा चतुष्कने विषे आदर्शमुख, मेंढमुख, अयोमुख, अने गोमुख, एवे नामे चार छीप . चोथा चतुष्कने विषे हयमुख, गजमुख, हरिमुख अने व्याघ्रमुख, एवां चार नामे चार छीप ने. अने श्रश्वकर्ण, सिंहकर्ण, अकर्ण अने कर्णप्रवावरण, एवे नामे पांचमा चतुष्कने विषे अंतरहीप जाणवा. उदकामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख अने विद्युदंत. एवे नामे उ का चतुष्कना अंतरछीप ने. सातमा चतुष्कनेविष घनदंत, लष्टदंत, गूढदंत, अने सि कदंत, एवां चार नाम जाणवां. ए अहावीश अंतरछीपना नाम कह्यां.
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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