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________________ 60 अढीवीपना नकशानी हकीगत. बे, ते चार चार पुष्करणीनां मध्यमां वच्चोवच्च एकेक प्रासादावतंसक , ते प्रासादा वतंसक बीजी त्रण दिसिनी डालने विषे जेवा नवनडे, तेवा जाणवा. ते जिनजुवन तथा प्रासादनां आठ आंतराने विषे श्रीजिन वने सहीत आठ कूट जाणवा ते प्रत्येक कूटनो बार योजन मूले विस्तार, मध्यमां आठ योजन अने शिखर उपर चार योजन विस्तार , तथा बाठ योजन ऊंचा , एवा श्राप तरुकूट कह्या बे. __ ए जंबू सुदर्शन वृद ते बीजा घणा तिलकवृद, लउकवृद, यावत् राजरुख प्रमुख वृक्ष करी सर्वदिसिये चोफेर वींटेलो, ए वृद उपर घणा श्राप श्राव मंगलिक, तथा कृष्ण, चामर, ध्वजा यावत् नातिन . एनां बार नाम अर्थ सहीत कहेजेः-एक शुनदर्शन माटे सुदर्शन, बीजो अनिष्फल मा टेश्रमोघ, त्रीजो मणिरत्नेकरी बक पीठमाटे सुप्रतिबक, चोथो यशनोधरनार माटे यशो धर,पांचमो जंबूहीपर्नु नाम विस्तारेमाटे विदेहजंबू,बको सोमनस एटले उत्तमवृद जेने देखवाथी केवारे मन पुष्ट नथाय सर्वदा प्रीतिवंत मन थाय, सातमुं शाश्वत नाम माटे नित्य,आठमुं अनादिकालनुं मंमित माटे नित्य मंडित, नवमुं कल्याणकारि उपजवरहीत माटे सुना. दशमो विस्तिरणवृद्ध माटे विशाल, अगीयारमुं सुनिष्पन्नरूप माटे सुजात बारमो एना दर्शनथी शुनमन थाय माटे सुमन, ए वृद उपर जंबूछीपनो धणी श्र नाहत देव एकपट्योपमने थाउखे वसे , माटे एनुं जंबू वृद्ध एवं शाश्वतुं नाम. हवे.ए महाविदेहने विषे देवकुरु नामे युगलीयानुं देत्र वखाणे बे. मेरुने दहण दिसे अने निषध पर्वतने उत्तर दिशिये देवकुरु नामे युगलियान क्षेत्र ते 11742 योजन उपर बे नाग पोहोळु बे ते श्रावी रीतेः-गजदंत गिरिमध्ये मेरुप र्वत थकी दक्षिणदिशिने विषे देवकुरुक्षेत्र, श्रने मेरुथी उत्तर दिशिने विषे उत्तरकुरुदे .ए बे युगलियाना क्षेत्र ते अर्डचंजमाने आकारे रह्यांबे, तिहां महाविदेह क्षेत्रनुं विस्तार तेत्रीश सहस्र बसेने चोरासी योजन अने उपर चार कला. तेमांदेथी मेरुनु विष्कंन दशसहस्र योजन काढिए तेवारे तेविश सहस्र बसेने चोरासी योजन अने उ पर चार कला उगरे तेहy अर्ड करीये तेवारे अगीआर सहस्र आठसेने बेतालीस योजन उपर कला बे थाय एटलो विष्कंन कुरुक्षेत्रनां मध्यनागने विषे जाणवो. एमां चित्रकूट नामे बे पर्वत, ते निषध प्रवर्तनी उत्तरदिसि थकी 34 योजन उ पर सातीया चार नाग अबाधाये सीतोदा नदीने पूर्वे अने पश्चिमे बे तटने विषे.ए बे पर्वत , तेनुं प्रमाण जेम उत्तर कुरुमां बे यमक पर्वत, कयुं तेम जाणवू. तथा ए बे चित्र कूटनी उत्तरदिसि थकी 34 योजन उपर सातीया चार लागनी
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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