SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीवर्डमान स्वामिने नमो नमः अथ // अढीहीपनां नकशानो विचार प्रारंभः // एक राज प्रमाण तिर्बो लोक तेमां असंख्याता दीप थने असंख्याता समुड बे,ते सर्वमां जंबलीप श्राद्यमां श्रने स्वयं रमण समुख अंतमां बे. ए सर्व वीप मली सं ख्याये अढीसागरोपम अर्थात् पच्चीश कोमाकोमी उकार पट्योपमनां जेटलांसमय थाय तेटलां , ते संस्थान थकी एकज श्राकारे अने विस्तार पणे अनेक प्रकारनां ने एटले प्रथम छीपथी प्रथम समुह द्विगुणो ने तेथी बीजो द्वीप बमणो ने तेथी बीजो समुह बमणो ने तेथी त्रीजो बीप बमणो एरीते सर्वे छीपसमुख विस्तारे एकेकथी बमणा बमणा पहोल पणे बे, सुप्रशस्त वस्तुनां जेवां जेवां नाम ले तेवां तेवां नामे ए छीप समुस ने ते वली एकेका नामे करी पण असंख्याता संख्याता ने जेम था मध्यनो जंबृद्धीप ने तेम एज जंबूने नामे बीजा पण असंख्याता बीपबे. ते सर्व दीप श्रने समुज्ने धन्यतर एटले तिर्यकलोकना मध्यवर्ति श्राजंबहीप जे. ते घका दीप समुपनी अपेक्षाये सर्वथकी न्हानो ने एमांजंबू सुदर्शन नामे वृक्ष तेमाटे एनुं जंबू एबुं नाम . ए जगति सहीत प्रमाणांगुले करी एक लाख योजन लांबो पहो सोने, थालीने आकारे, कमलना डोडाने श्राकारे, तेलना पुडला करीये ते जेवा गोल होय तेवा श्राकारे, पूरण चंद्रमाने आकारे, तथा रथना पश्माने श्राकारे गोल बे. एनी त्रणलाख शोलहजार वशे सत्तावीश योजन, त्रणकोश,एकशो अहावीश धनुष्य, तेर अंगुल, पांच यव, एक जू, एक लीख, चार वाल, वली एक वालनां शाठ नाग करीये ते मांहेला सात जाग तथा वली ते शाठीया एक नागनां एकश नाग करीये ते माहेला दशजाग उपर एटली परिधि ने शेष सर्वश्रसंख्याता जंबूलीप चूमीने श्राकारे जाणवा अने असंख्याता कोमा कोनी योजननां साबा पदोला , ए प्रथम जं. ब्रहीप जे जे ते बीजा सर्वे असंख्याता बीप श्रने समुझे करी वीटेलो बे. 'जेम जंष्ट्रीप जगती सहीत एकलाख योजननो ने तेम एने फरतो लवण समुफ डे ते जगती सहीत बे लाख योजननां विस्तार वालो ने तेमज लवण समुज्ने फरतो धा तकी खंड दे ते जगती सहीत चार लाख योजन डे तथा धातकी खंमने फरतो का लोद समुज्जे ते जगती सहीत आठ लाख योजन तथा कालोद समुपने फरतो पु करवर छीपने ते पूरणतो शोल लाख योजन डे परंतु ते मांदेडुं आउलाख योजन प्र
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy