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________________ ६ए अढीछीपना नकशानी हकीगत. कछ नामे देवता एक पढ्योपमायु वालो वशे , तेम सर्व विजयने विषे ते ते विज यने नामे देवता पण कहेवा. हवे विजयनी नदी कडे. निषध तथा नीलवंतने समीपे जे कुंडले, ते थकी नी कली एवी गंगा अने सिंधु, नामे जे नदी , ते कछादिक आठ विजय तथा पद्मादि क आठ विजय मली शोल विजयने विषे ए बे बे नदी जाणवी. अने शेष वीजा जे वनादिक श्राप विजय तथा वप्रादिक आठ विजय ए शोल विजयने विषे रक्ता अने रक्तवती नामा बे वे नदी बे, ते सर्व नदी वैताढ्य प्रत्ये नेदीने शीतोदा तथा शी तामांहे प्रवेश करे दे. ए कबादिक विजयथी दक्षणावर्त्त गणीये. हवे महाविदेह क्षेत्रने विषेपूर्व तथा पश्चिम दिशिए शीतोदा तथा शीतानदी जगतीने नेदीने ज्यां समुडमांहे मले . त्यां जगतीमांनी दिशि शीतोदा तथा शीता नदीने बन्ने बाजु चार वन मुख तेनुं जगतीनी विवदाविना पहोलपणुं गणत्रीशसेने बावीस योज ननुं शीतोदा तथा शीता नदीने समीपे जाणवू.पली संकोचता संकोचता निषध तथा नील वंतने पाशे वनमुखनुं विस्तार एककला जाणवी. हवे कुल गिरि थकी नदी दिशि जातां वांछित स्थानकने विषे वनमुखनुं विस्तार जाणवानो विधि कहे. निषध तथा नीलवं तने समीपे वनमुखनो विस्तार एक कला तो नदीने समीपे निषध तथा नीलवंत थकी सोल हजार पांचसेने बाणु योजन उपर बे कला जइए तेवारे वनमुखनो विस्तार केटबुं थाय ते जाणवा माटे ए पूर्वोक्त सोल हजार पांचसे ने वाणु योजननी कला करीए ते कला त्रण लाख पंदर हजार बसे ने पचाश थाय, तेने नदीने समीपे वनमुखनुं वि स्तार उगणत्रीससेने बावीश योजन, तेनी साथे गुणीए तेवारे बाणुकोडी अगीबार लाख साठ हजार ने पांचसे थाय, तेने ते देवना विस्तार त्रण लाख पंदर हजार बसे ने पचाश साथे नाग आपीए तेवारे उगणत्रीशसे ने बावीश योजन वनमुखनुं विस्तार थाय. ए प्रकारे ज्यां वांछिए त्यां वनमुखनुं विस्तार लाने. ए प्रत्येक वनमुख पद्मवरवे दिका अने वनखंडे करी वींटेला बे, यावत् देवता बेसे बे. इत्यादि सर्व कहेवं. हवे ए विजयादिकनो विस्तार एकगे करतां लाख योजन पूर्ण थाय ते कहे. पांत्रीस हजार चारसे ने उ योजन एटलो सर्व विजयनो विष्कं न जाणवो. अने वे वन मुखनो विष्कंन अहावनसे ने चुमालीश योजन , सातसेने पचास योजन अंतरनदीन पहोलपणुंडे, अने चोपन हजार योजन मेरु तथा जमशाल वन डे, ते केम के नशाल वनजे , ते मेरुथकी पूर्वदिशि अने पश्चिम दिशि बावीश बावीश हजार योजनबे. ते माटे बे बाजुना चुमालीश हजार योजन थया अने मेरुनो मध्य विस्तार दश हजार यो
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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