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________________ 160 चोवीश दंडकें पांत्रीश धार त्रण विकलेंजिय, तिथंच अने मनुष्य, विना आठ अथवा सात प्राण होय, ए श्राप दमकवाला जीवो श्रावी उप श्रने गर्नजने दशे प्राण होय. जे. अने गर्नजमां तो तेज श्रने वाज, संमूर्जिमने संयतीना आठ जंग नार ए बे दंमक वर्जीने शेष बावीश दमक कीनी पेरे होय, अने गर्नजने विषे सं ना जीवो श्रावी उपजे. . यतीना चोवीश जंग सर्व प्रकारे लाने. 23 संमूर्छिमने एक नपुंसक वेद होय थ ३०सचित्तादिक त्रणेप्रकारना आहार लीये. ने गर्नजने त्रणे वेद होय. 31 उजादिक त्रण प्रकारे आहार लीये. 24 अल्पबहुत्वमा गर्नज मनुष्य, संख्याये 32 संमूर्बिमने जघन्य एक समय अने उ सर्वदंगकथकी स्वल्प बे. स्कृष्टयी एक अंतरमुहूर्ते अने गर्नजने 25 एमनां जवन नथी. जघन्य एक अंतरमुहर्ते अने उत्कृष्ट 26 विरहकाल तिर्यंच पंचेंजियनी पेरे बे. थी अहमनक्तं आहारनी श्छा उपजे. संमूर्बिममा एकज मिथ्यात्व गुणगणुं ला 33 काय स्थिति सात आठ जवनी जाणवी. ने अने गर्नजमां चउदे गुणगणां लाने. 34 चौद लाख योनि जाणवी.' 20 संमूर्जिमने मनोबल अने वचनबल 35 बार लाख कोमी कुल जाणवां. 22 हवे बावीशमा व्यंतर देशोना दमकें पांत्रीश द्वार कहे बे. 1 वैक्रिय, तैजस अने कार्मण, ए त्रण 10 सम्यक्त्वादिक त्रणे दृष्टि होय. शरीर होय. 11 प्रथमनांत्रण दर्शन होय. 2 उपजता जघन्यथी अंगुलनो असंख्या 12 प्रथमनां त्रण ज्ञान तथा त्रण अज्ञान तमो नाग अने उत्कृष्टी सात हाथनी मलीन होय. श्रवगाहना होय तथा उत्तरवैक्रिय करे 13 मनना चार, वचनना चार तथा वैक्रिय तो जघन्यथी अंगुलनोसंख्यातमो नाग काययोग, वैक्रियमिश्रकाययोग अने अने उत्कृष्ठ एक लाख योजन जाणवो. कामर्ण काययोग.ए अगीयारयोग होय. 3 संघयण रहितहोय असंघयणी ने माटे. 14 नारकीनी पेरे नव उपयोग होय. 4 संज्ञा चार, दश, शोल, होय. . 15 एकसमये जघन्यथी एक, बे,त्रण अने 5 एक समचतुरस्त्र संस्थान जाणवू. उत्कृष्टा संख्याता असंख्याता उपजे. 6 क्रोधादिक चारे कषाय होय. 26 उपपातनी पेरे च्यवन पण जाणवू. 7 तेजो पर्यंत प्रथमनी चार लेश्या होय. 17 जघन्य दश हजारवर्ष अने उत्कृष्टुं ए पांचे इंजिय होय. क पख्योपमायु जाणवू. .. ए प्रथमना पांच समुद्घात होय. (17 पर्याप्ति बहोय परंतु नाषा अने मन सा
SR No.004399
Book TitleAdhidwipna Nakshani Hakikat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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