Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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4. नाग पृष्ठभूमि :- पूर्व और पश्चिम दिशा में लंबी, उत्तर दक्षिण दिशा में ऊंची तथा बीचो-बीच जो भूमि नीची होती है उस भूमि को नाग पृष्ठ भूमि कहते हैं। ऐसी भूमि पर वास्तु निर्माण करने से उद्वेग, भय, स्त्री- पुत्रादि को मरण तुल्य कष्ट तथा शत्रु वृद्धि होती है।
मृत्यु
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट
हो जाता है कि भूमि का नैसर्गिक
उतार अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इससे वास्तु
निर्माण में निवास करने वालों के भाग्य का अनुमान लगाया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा में उत्तार रहना उत्तम है। साथ ही पूर्व में नैसर्गिक उतार भाग्योदय का स्थान है। पूर्व की ओर उत्तार रहने से उदीयमान सूर्य की किरणें उस जमीन पर तथा उस पर निर्मित वास्तु पर पड़ती हैं तथा भूमि को सुपक्व बनाती हैं एवं वास्तु को तथा उसमें निवासी परिवार को बलदायक होती हैं।
पूर्व की ओर से सूर्य का उदय सबको प्रकाशमान करता है तथा सर्व अभ्युदय का कारण है। इसी कारण पूर्व दिशा शुभ मानी जाती है। वर्षा का पानी पूर्व की ओर उतार होने से सीधा जमीन में जाता है। उस पर पतित प्रातः कालीन सूर्य किरणें सभी को समृद्धिदायी होती है। इससे परिवार आर्थिक दृष्टि से सबल होता है। धन धान्य में वृद्धि होती है। परिजन स्वस्थ, बल एवं तेज से पूर्ण होते हैं।
वास्तु चिन्तामणि
उत्तर दिशा का स्वामी कुबेर माना जाता है। कुबेर की दृष्टि जमीन एवं मकान पर होती है। इस कारण उत्तर की ओर नैसर्गिक उत्तार उत्तम फलदायी है। इससे परिवार में धन, बल, बुद्धि की प्राप्ति होती है । उत्तर दिशा की ओर विद्यमान विदेह क्षेत्र से बीस तीर्थंकरों का सहज स्मरण पुण्य प्राप्ति में सहायक होता है। पुण्य से नाना प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। उत्तर की ओर मुख करके शुभ क्रियाओं को करने की परम्परा भी पुरातन है। यही कारण हैं कि उत्तर दिशा शुभ मानी गई है। उत्तर दिशा में
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