Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
View full book text
________________
50
8.
9.
10.
वास्तु चिन्तामणि
स्तम्भ के ऊपर जो तिरछा मोटा काष्ठ रहता है उसे भारवट कहते
हैं ।
पील कड़ी और धरण तीनों एकार्थवानी हैं
ओरडे से पटशाला तक मुख्य घर होता है। घर में जो रसोईघर आदि भाग हैं वे सब मुख्य घर के आभूषण हैं।
द्विशाला घर के लक्षण
द्विशाला घर की भूमि की लम्बाई व चौड़ाई के तीन भाग करने से नौ भाग हो जाते हैं। इनमें से मध्य भाग को छोड़कर शेष आठ भागों में से दो भागों में शाला बनाना चाहिए। शेष भाग की भूमि खाली रखनी चाहिए। इसी प्रकार चार दिशाओं में चार प्रकार की शाला होती हैं।
इस प्रकार अनेक तरह के घर बनते हैं जिनका विशेष उल्लेख समरांगण एवं राजवल्लभ आदि ग्रंथों में मिलता है।
दो दिशाओं में शाला
दक्षिण व आग्नेय
नैऋत्य व पश्चिम
वायव्य व उत्तर
पूर्व व ईशान
घर का नाम
सिद्धार्थ
यसूर्य
दण्ड
काच
चूल्हि
शाला मुख दिशा
उत्सर
पूर्व
दक्षिण
पश्चिम
शालाओं का नाम
कारिणी व महिषी
गावी व महिषी
छागी व गावी
छागी व हस्तिनी
गावी व हस्तिनी
नाम
करिणी ( हस्तिनी) शाला
महिषी शाला
गावी शाला
छागी शाला
फल
शुभ
मृत्यु
धन हानि
हानिकारक
अशुभ