Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur

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Page 269
________________ 242 वास्तु चिन्तामणि अथ पूजाक्रमः पूर्ववद्वायुकुमारादिप्रयोगेणभूमिसंस्कारः। यहां पंचकुमार पूजा करना चाहिए। श्री मोक्ष लक्ष्मीश जिनेन्द्रबिम्बं श्री मोक्षलक्ष्मीशवचो विलासं। श्री मोक्षलक्ष्मीशगणेन्द्र पादौ श्री मोक्षलक्ष्मीशपुरः समर्चे।।।।। वातात्वग्निसुधाशनैश्च भुजनाम् श्री क्षेत्रपालं कृतं। संताऽऽशु कुशान दिशासु नवसु ब्रह्मादिकासु क्रमात्।। गंधा हरितालितालिकलितान् रत्निप्रमाणन्विता। विन्यस्याऽक्षय संपदे बहुफलैः श्रीवास्तुभूमियजे।।2।। ऊँ सर्वाभ्युदयनिश्रेयसदुस्तर निस्थितसुरवसाधक तया रत्नत्रय सद्धर्म प्रतिपादक सर्व वीतराग परमार्हत्परमेश्वर स्थापना न्यासनि बंधन चैत्य चैत्यालय संरक्षण सर्वविघ्नोपनोदन निकायिकाना। संभावित सर्वमाननीय भाव्यधिप वास्तुदेव पूजाधिकरण भूतस्यासमुचितोद्देश विरचित एकचतुर्द्वादश विंशत्यष्ठोत्तर विंशतिषट्त्रिंशत्प्रमाणाष्टक माला शिलाषट्कसूत्र सन्धि चतुष्टयादि विशिष्ट लक्षणोपलक्षित चतुःषष्ठिकोष्ठ मंडित मंडूक पदस्य। मध्यमभागे स्थित ब्रह्मण स्तदभिमुख देवभागाः। पूर्वादि दिगत त्रि त्रि भाग भागिनां चतुर्णा मार्यादि देवानां। मानुष पदाग्नेयादि कोण चतुष्ठयार्धा समस्थिति सविंद्राद्यष्ट देवानां। पूर्वादि दिग्गाताष्ट दिक्पाल केशवामतरालादिपदवर्तिपजघन्यादिचतुर्विंशतिदेवोपलक्षितपै शचिकपदे वर्तमानाना। स्वस्व दक्षिणेकैकांत पदभोगिना। जयांतांतरे पर्जन्य दिपावक पूषनैऋत दौवारिक पवन नाग भिधान देवाना। अग्नेयादि चतुःकोण बहिर बस्थिताना। विचारी प्रभृत्यपदचतुर्देवानां। ब्रह्माणो दक्षिमवलोकं यथा महेशां सर्वेषां। आर्यशिरोब्रह्मकायविवस्वदभूधरदक्षिणोत्तरपार्श्व मित्रमोहन सविंद्रा युगापनवेतरभुजेन्द्रद्वयदक्षिणोत्तरभरणकुब्जदौर्मुखशायिना। मर्मादिनीत वास्तु सहभरितसर्ववास्तुदेवानां। जलगन्धाक्षतपुष्पदीपधुपान्वितेन पपव्यंजन मोदक स्वस्वरूप सामान्य बलिना जलधारांत्य वंक्ष्यमाण विशेष बालिना। पूनर्जलधारावसानेन स्वस्वमंत्राभिमंत्रितेन समलंकृतकन्या सुयोग गणिकान्यतमो द्वतेन सुप्रसादमापाद यतु कामाः। स्नानानु स्नान सितधौ तातरियोत्तरीय परिवासभूषानुलेपनमाल्यप्रासादनकलिताः । कृत सकलीकरण क्रिया: । तत्प्रतीन्द्राः सत्परिचारका: एते वयं देवाद्यर्हसुहृदादि स्वग्रहादि सुख विविधेच्छितेषु। विधियमानेष्वष्ट कर्मणिदेवितोपद्रवे वा भवद्भवित सर्व विन्धोपशमतासुमुक्त सर्व वास्तुदेवानां प्रत्येक पूजाक्रमयथाक्रममुपक्रमामहे। पुनः पुष्पांजलिः।।

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