Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
(दश दिक्पाल के मंत्र) इन्द्राग्नि दंडधर नैऋत पाशपाणि, वायुतरेश शशिमौलि फणीन्द्र चन्द्राः। आगत्य यूयमिह सानुचराः सचिन्हाः, स्वं स्वं प्रतीच्छत वलिं जिनपाभिषेके।
ऊँ आ क्लौं ह्रीं इन्द्र आगच्छ - आगच्छ इन्द्राय स्वाहा। ऊँ आं क्रौं ही अग्ने आगच्छ - आगच्छ आग्नेय स्वाहा। ॐ आं क्रौं ही यम आगच्छ - आगच्छ यमाय स्वाहा। ॐ आं क्लौं ह्रीं नैऋत आगच्छ - आगच्छ नैऋताय स्वाहा। ऊँ आ क्रौं ह्रीं वरुण आगच्छ- आगच्छ वरुणाय स्वाहा। ॐ आं नौं ही पवन आगच्छ -आगच्छ पवनाय स्वाहा। ॐ आं क्लौं ह्रीं धरणेन्द्र आगच्छ- आगच्छ धरणेन्द्राय स्वाहा। ॐ आं क्रौं ह्रीं ऐशान आगच्छ-आगच्छ ऐशानाय स्वाहा। ॐ आं क्रौं हीं कुबेर आगच्छ -आगच्छ कुबेराय स्वाहा। ॐ आं क्रौं ह्रीं सोम आगच्छ- आगच्छ सोमाय स्वाहा।
मंगल नमन करूँ अरहंत को श्रुत को सुमरूँ आज। गुरु पद चरणन न , रचूँ वास्तु विधान||1|| जिनमन्दिर गृह आदि का वास्तु करो सुजान। बिना वास्तु गृह आदि तो करे उपद्रव हान।।2।। वास्तु पूजा द्रव्य ले, और पुष्पांजलिं हाथा जिनेन्द्रादि सब देव मिल, मुझको करो सहाय।।३।। पुष्पांजलि अर्पण करूँ, मन में मोद भराय।
दुख दारिद्र सभी टले, घर में आनन्द छाय।।4।। ॐ परम ब्रह्मणे नमो नमः। स्वस्ति- स्वस्ति, जीव-जीव, नन्द-नन्द वर्धस्व - वर्धस्व, विजयस्व-विजयस्व, अनुशाधि- अनुशाधि, पुनीहि -पुनीहि, पुन्याहं-पुन्याडं मांगल्यं मांगल्यं।।
पुष्पांजलि क्षिपेत्।
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