Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur

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Page 303
________________ 276 वास्तु चिन्तामणि ॐ समस्तनदीतीर्थजलं भवतु, कुंभेषु हिरण्यं निक्षिपामि स्वाहा। नेत्राय संवौष्ट् कलशार्चनम्। वास्तु विधान करके होम करें, फिर विसर्जन कर दें। नोट- इस वास्तु विधान को ग्रह शांति के लिए, नवीन गृह प्रवेश के समय या जिन मन्दिर प्रतिष्ठा के समय पहले करके फिर गृह प्रवेश करें, फिर मन्दिर प्रतिष्ठा करें। गृह प्रवेश के पूर्व किसी भी शाति मंत्र का 21 हजार जाप अवश्य कर लें और दशांश आहुति करें। समस्त भूमिगत उपद्रव शांत हो जाएंगे, घर की शुद्धि और मन्दिर की शुद्धि हो जाएगी। "इति वास्तु विधान समाप्त" मंत्र ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय जगत शांतिकराय मम सर्वपरिवारस्य गृहस्य सर्वोपद्वशांतिं कुरु कुरु स्वाहा। शांति हवन विधि एक मिट्टी का हवन कुंड लें, निम्न मंत्र बोलकर शुद्ध करें (डाभ के पत्तो से) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हौं ह: नमः स्वाहा। दीपक जलाएँ निम्नलिखित मंत्र बोलेंॐ हीं अज्ञानतिमिरहरं दीपक संस्थापयामि भूमि शुद्धि करें ॐ हीं मेघकुमाराय धरा प्रक्षालय-प्रक्षालय, अंहं तं पं वं झं झं यं क्ष: फट् स्वाहा। पहले यंत्र का प्रक्षालन करें फिर अर्घ्य चढाएँ। ॐ भूर्भुव: स्वाहा एतद् विघ्नौघवारक यंत्रमहं परिषिचयामि। अब हवन कुण्ड में अग्नि स्थापित करें, कपूर रखें। ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं अग्नि संस्थापयामि ग्रार्हपत्ये। मंत्र बोलें, फिर अर्घ्य चढाएं 1. ॐ हीं चतुष्कोणे तीर्थंकरकुण्डे ग्रार्हपत्याग्नये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 2. ॐ हीं गोलगणधरकुण्डे आहनीयाग्नेयं अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 3. ॐ ही त्रिकोणकेवलीकुण्डे दक्षिणाग्नेय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।

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