Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि विनम; स्तबकैश्चद सालादिफलैरलं।
श्रीमज्जैनेश्वरीं वाणी यायजे ज्ञानसंपदे। ऊँ ही शब्द ब्रह्मणे फलम् निर्वपामि स्वाहा।।
गंधाढयोदकधारया हृदययहदधैर्विशुद्धक्षतैरोचिष्णुप्रसवैर्विचित्रसुरभिस्फारस्फुरदीपकैः। गीर्वाणस्पृहणीयधूमविलसध्दूपैः सुधासत्फलस्तोमैः स्वस्तिकपूर्वकैः सुरुचिरं श्रुत्यैददेऽयं विभो।।
अर्ध्य इत्यमीभिः समाराध्य पूजाद्रव्यं श्रुतं वरं। भारताविमा शनिधारा विधीयते।10।
शांतिधारा द्वादशांगांगिनी भास्वद्रत्नत्रयाविभूषणां। सर्वभाषात्मकां स्वच्छंजैनी वाणीमुपास्महे ।।
पुष्पांजलि:
अथ गणधर पूजा (आचार्य पूजा) स्थापना
ये येऽनगरा ऋषयो यतींद्रा मनीश्वरा भव्य भवद्व्यतीताः। तेषां व्रतीशां पदपंकजानि संपूजयामो गुणशीलसिद्ध्यै।। ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रपवित्रतरगात्रचतुरशीतिलक्षगुणधरचरणा अत्र अवतरतावत्तरत संवौषट् स्वाहा। आहान।
ॐ अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठाठ: स्वाहा। स्थापन। ॐ अत्र मम सन्निहिता भव-भव वषट् स्वाहा। सन्निधीकरण।।
अष्टकम् पुनातु नः सौरभलोललोभ मधुव्रत श्रेणिहतानुषंगा।
नादेय गंगा यमुनार्जितेषा मुनींद्रपादार्चन वारिधारा।। ऊँ ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र पवित्रतरगात्र चतुरशीतिलक्ष गुणगणधर चरणेभ्यो । जलं निर्वपामि स्वाहा।।। जलं।।
भितोपमिश्रीकृत विश्वगंध परिस्फूरन्नूतन वासवृन्दः।
तपोधनादेशपदानुलेपो यशो मदीयं विशदीकरोतु।। ॐ हीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारिब पवित्रतरगान चतुरशीतिलक्ष गुणगणधर चरणेभ्यो । गंध निर्वपामि स्वाहा।।2।। गंध।।
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