Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
View full book text ________________
वास्तु चिन्तामणि
____
241
241
अथ वास्तु विधानम् ॐ परमब्रह्मणे नमो नम:। स्वस्ति स्वस्ति। जीव जीव। नंद नंद। वर्धस्व वर्धस्व। विजयस्व विजयस्व।अनुशाधि अनुशाधि। पुनीहि पुनीहि। पुन्याहं पुन्याह। मांगल्यं मांगल्यं। पुष्पांजलि:।।
घंटाटंकार वीणाक्कणित मुरजधां धां क्रियां काहलार्चि। झी कारोदारभेरी पटहदलदलंकार संभूत घोषैः ।। आक्रम्याऽशेषकाष्ठातटमघटितं प्रोद्घाटं दभटिभ। मिष्ठाधिष्ठाहविष्ठि प्रमुखमिह लसांतांजलिः प्रदिपारित ॐ हीं वाद्यमुद्घोषयामि स्वाहा। वाद्यमुद्घोषणं।
वाद्य बजवाएं।
ॐ जलस्थलशिलावालुका पर्यन्तरभूमिशोधनपुर: सरपरिपूरित शुद्धवालु केष्टकोमल मृस्नाधिष्ठिताधिष्ठाने। पंचविधरत्नरमणीय पंचालकारोपितशात कुथंमयस्तम्भ संभृते। सततशैत्य मांद्य सौरभ संसक्तमंदानिलांदोलित पताका पक्ति विलसिते। सुवर्णशिखर विन्यस्तमाणिक्य मयूखमालावर विरचित श्रीविमानविराजमाने। चतुर्दिक्षुगोपुर द्वारतोरणोभय पार्श्वप्रदेश विनिहित मणिमय मंगलकलशे।। विविध-विमलाबर विरचितवितान विलंबित मुक्तादामाद्यलंकृते। मुक्तिवधूस्वयंवर श्रीविवाहविभव निवासभासुरे। समुचित समस्तस पर्यायव्यसंदोहसमन्वित विपुलतरललित चैत्यायतने। जिनेन्द्र कल्याणभ्युदय महामहोत्सवभिरामेषु। वास्तु मंडपभ्यंतरेषु पुष्पांजलि।
पुष्पांजलिः।
Loading... Page Navigation 1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306