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वास्तु चिन्तामणि
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अथ वास्तु विधानम् ॐ परमब्रह्मणे नमो नम:। स्वस्ति स्वस्ति। जीव जीव। नंद नंद। वर्धस्व वर्धस्व। विजयस्व विजयस्व।अनुशाधि अनुशाधि। पुनीहि पुनीहि। पुन्याहं पुन्याह। मांगल्यं मांगल्यं। पुष्पांजलि:।।
घंटाटंकार वीणाक्कणित मुरजधां धां क्रियां काहलार्चि। झी कारोदारभेरी पटहदलदलंकार संभूत घोषैः ।। आक्रम्याऽशेषकाष्ठातटमघटितं प्रोद्घाटं दभटिभ। मिष्ठाधिष्ठाहविष्ठि प्रमुखमिह लसांतांजलिः प्रदिपारित ॐ हीं वाद्यमुद्घोषयामि स्वाहा। वाद्यमुद्घोषणं।
वाद्य बजवाएं।
ॐ जलस्थलशिलावालुका पर्यन्तरभूमिशोधनपुर: सरपरिपूरित शुद्धवालु केष्टकोमल मृस्नाधिष्ठिताधिष्ठाने। पंचविधरत्नरमणीय पंचालकारोपितशात कुथंमयस्तम्भ संभृते। सततशैत्य मांद्य सौरभ संसक्तमंदानिलांदोलित पताका पक्ति विलसिते। सुवर्णशिखर विन्यस्तमाणिक्य मयूखमालावर विरचित श्रीविमानविराजमाने। चतुर्दिक्षुगोपुर द्वारतोरणोभय पार्श्वप्रदेश विनिहित मणिमय मंगलकलशे।। विविध-विमलाबर विरचितवितान विलंबित मुक्तादामाद्यलंकृते। मुक्तिवधूस्वयंवर श्रीविवाहविभव निवासभासुरे। समुचित समस्तस पर्यायव्यसंदोहसमन्वित विपुलतरललित चैत्यायतने। जिनेन्द्र कल्याणभ्युदय महामहोत्सवभिरामेषु। वास्तु मंडपभ्यंतरेषु पुष्पांजलि।
पुष्पांजलिः।