Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
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चाहिए। घर के द्वार भाग से पीछे का भाग ऊंचा होना चाहिए जबकि दुकान के आगे का भाग ऊंचा तथा मध्य में समान होना अच्छा है।
कुछ और उल्लेखनीय बातें इस प्रकार हैं
दुकान के ईशान कोण को एकदम खाली रखें तथा साफ एवं स्वच्छ रखें। ईशान कोने में जिनेन्द्र प्रभु या जिनगुरुओं के चित्र लगाएं।
पीने के पानी का घड़ा या बर्तन ईशान दिशा में रखें किन्तु दुकान का सामान इस तरफ न रखें।
दुकान में ग्राहक को देखने हेतु अपना मुख उत्तर या पूर्व की ओर करके बैठे। दुकान में कूलर, पंखा, हीटर, फ्रिज आदि आग्नेय दिशा में रखें। यथासंभव शोकेस, बाक्स, भरी पेटियां, स्टैण्ड, माल, बोरे किसी भी स्थिति में ईशान में न रखें। तराजू दक्षिण या पश्चिमी दीवाल की ओर स्तम्भ पर रखें।
स्वामी की वैट
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| TTT फर्श का ढलान -
| धनपेटी उत्तर की दिशा में
स्वामी की बैठक शुभ यदि मालिक का कक्ष अलग से बनाना हो तो मालिक, प्रबन्धक, व्यवस्थापक आदि के कक्ष नैऋत्य दिशा में बनाएं तथा उसमें बैठक ऐसी रखें कि मुख उत्तर या पूर्व की ओर हो। कक्षों का प्रवेश ईशान, पूर्व या उत्तर की ओर रखना श्रेयस्कर है। कक्ष का द्वार आग्नेय अथवा वायव्य में नहीं रखना चाहिए। ___ व्यापारिक भवन की लम्बाई चौड़ाई में थोड़ा सा विस्तार भी उसके फल को प्रभावित करता है। अतएव व्यापारिक कक्ष या दुकान की लम्बाई चौड़ाई में सदैव ध्यान रखें कि ईशान कोण की ओर कुछ वृद्धि या बढ़ाव हो। ईशान से वायव्य कोण की लम्बाई की अपेक्षा आग्नेय से नैऋत्य कोण की लम्बाई कुछ अल्प होना आवश्यक है। इसी भांति यह भी ध्यान रखें कि ईशान कोण से आग्नेय कोण की लम्बाई कुछ अल्प होना चाहिए।