Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
धरातल नैऋत्य में धरातल सारे भूखण्ड में सबसे अधिक ऊंचा रखना चाहिए। ईशान, उत्तरी, पूर्वी भाग अपेक्षाकृत नीचे रखना चाहिए।
रिक्त स्थान सामान्य वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप उद्योग भूरखण्ड में उत्तरी एवं पूर्वी भाग अपेक्षाकृत अधिक खाली रखें। दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग में रिक्त स्थान कम रखना चाहिए।
झुकावदार छत सामान्यत: दक्षिण एवं पश्चिम में छत का झुकाव उत्तर एवं पूर्व की अपेक्षा कम होना चाहिए।
प्रवेश द्वार कारखाने का प्रमुख प्रवेश द्वार पूर्व, उत्तर एवं ईशान दिशा में रखना चाहिए। बड़े वाहनों के आगमन के अनुरूप दो स्थानों पर दरवाजे (गेट) बनाना चाहिए। मुख्य प्रवेश नैऋत्य में कदापि न रखें। मुख्य प्रवेश पूर्वी आग्नेय, उत्तरी वायव्य में भी न रखें।
निकास द्वार निकास के लिए द्वार उत्तर अथवा पश्चिम दिशा में रखा जाना उपयुक्त रहता है।
प्रशासनिक कार्यालय उद्योग का प्रशासनिक कार्यालय पूर्व अथवा उत्तर दिशा में रखना चाहिए। यदि अपरिहार्य हो तो पश्चिम में भी रखा जा सकता है। इसमें बैठने वाले अधिकारी या कर्मचारी उत्तर एवं पूर्व में मुख करके बैठे, इस प्रकार की बैठक व्यवस्था रखना चाहिए।
मशीनों की स्थापना उद्योगों का मूल केन्द्र मशीनें होती हैं। इनमें विद्युत, अग्नि एवं रसायनों इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। भारी मशीनों की स्थापना दक्षिणी भाग में ही करना चाहिए। हल्की मशीनों की स्थापना इनके उत्तरी भाग में की जा सकती है। मशीनों की स्थापना दक्षिण से पश्चिम की ओर करना चाहिए।
भार तोलक मशीन वजन मापने की मशीन पर स्थायी भार नहीं होता है। अतएव मध्य उत्तर अथवा मध्य पूर्व में रखना उपयुक्त है।