Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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गृहारम्भ में
वृषभ वास्तु चक्र
गृह, प्रासाद आदि के निर्माण कार्य का प्रारम्भ करने से पूर्व वृषभ वास्तु चक्र का भी निरीक्षण करना चाहिए। जिस नक्षत्र पर सूर्य हो उससे चन्द्रमा के नक्षत्र तक की गिनती करना चाहिए। प्रथम तीन नक्षत्र वृषभ के मस्तिष्क पर समझें । तदुपरान्त आगे आगे के नक्षत्र अलग- अलग अंगों पर समझना
चाहिए।
नक्ष
प्रथम तीन नक्षत्र
पश्चात् चार नक्षत्र
पश्चात् चार नक्षत्र
पश्चात् तीन नक्षत्र
पश्चात् चार नक्षत्र
पश्चात् तीन नक्षत्र
स्थिति
मस्तक पर
अग्रपाद पर
( पंजे पर)
पिछले पाद पर
पीठ पर
दाएं पेट पर
पश्चात् चार नक्षत्र
पश्चात् तीन नक्षत्र
वास्तु चिन्तामणि
परिणाम
अग्नि उपद्रव
निर्मित
गृह
निर्जन रहता है
स्थिरता, गृह में दीर्घकाल तक वास
लक्ष्मी की प्राप्ति
लाभ, धन धान्य की प्राप्ति
गृह स्वामी का नाश
गृह स्वामी को दरिद्रता
निरन्तर कष्ट
पूंछ पर
बाएं पेट पर
मुख पर
सामान्य रूप से सूर्य नक्षत्र से चन्द्रमा के नक्षत्र तक गिनना चाहिए। इनमें प्रथम सात नक्षत्र अशुभ हैं, फिर आठ से अठारह तक के ग्यारह नक्षत्र शुभ हैं, पश्चात् उन्नीस से अट्ठाईस तक अशुभ हैं।