Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
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वास्तु पूजन जब किसी नवीन वास्तु का निर्माण कराया जाता हैं अथवा नया मन्दिर निर्मित किया जाता है तो उसके निमित्त वास्तु शान्ति विधान अवश्य ही किया जाना चाहिए। तालाब, कुंआ, बोरवेल इत्यादि का निर्माण कराने पर भी वास्तु शान्ति किया जाना आवश्यक होता है। दुकान, उद्योग, विद्यालय, चिकित्सालय या कोई अन्य वास्तु हो तो भी वास्तु शांति किया जाना आवश्यक है। ___ जिनागम में वास्तु शान्ति के लिए पृथक-पृथक प्रकार के वास्तु चक्रों को बताया गया है। इनको एक बड़े तख्ते पर मण्डल मांडकर बनाना चाहिये। तत्पश्चात् उस वास्तु देवता के लिए दर्शाये अनुसार पूजा में नैवेद्य पृथक-पृथक कोष्ठक में रखना चाहिए।
ग्रामे भूपतिमन्दिरे च नगरे पूज्यश्चतुष्टिकैरेकाशीतिपदैः समस्त भवनेजीर्ण नवाब्ध्यंशकः। प्रासादे तु शतांशकैस्तु सकले पूज्यस्तथा मंडपे,
कूपे षण्णव चन्द्रभाग सहितैर्वाप्यां तडागे वने।। गांव, राजमहल, नगर में चौंसठ पद का वास्तु चक्र पूजन करना चाहिए। सभी प्रकार के घरों में इक्यासी पद का, जीर्णोद्धार में उनचास पद का, समस्त देवालयों तथा मंडप में सौ पद का तथा कुंए, बावड़ी, तालाब एवं वन में एक सौ छियानवे पद का वास्तु पूजन करना चाहिए।
वास्तु शांति विधान जैन एवं जैनेतर दोनों में वास्तु शांति पूजा का प्रचलन है किन्तु इसके लिए समुचित जानकारी सामान्य जनों को नहीं होती। कुछ गृहस्थ शाति विधान अथवा अन्य सामान्य पूजा पाठ करके अपने कर्तव्य को इति श्री समझ लेते हैं। जैनेतर सम्प्रदायों में अनेकों स्थानों पर पूजा के स्थान पर विभिन्न हिंसा जन्य क्रियाएं तथा बलि का आयोजन करने की पद्धति देखी जाती है। गृह प्रवेश एक अत्यंत भंगलमय शुभ कर्म है तथा इस अवसर पर किसी भी प्राणी का वध करना तथा उसकी बलि से शांति मानना केवल भ्रम है। यह एक पापमूलक क्रिया है तथा गृह प्रवेश के निमित्त की जाने वाली पशु बलि • से कभी भी गृह उपयोग कर्ता सुखी नहीं रह सकता है।