Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
सादीन काल से प्रमलिर: शाओं के अनुरूप आशाधरजी विरचित वास्तु विधान को आधार करके यह वास्तु शांति विधान प्रस्तुत है। गृहस्थजन इसका सदुपयोग करें। श्री जिनेन्द्र प्रभु की पूजा समाहित वास्तु शाति विधान करके वास्तु भूमि पर स्थित वास्तु देवों को अर्घ्य देकर गृह प्रवेश करना इष्ट है।
देवालय निर्माण करते समय निम्नलिखित चौदह अवसरों पर शांति पूजा करने का निर्देश शिल्प शास्त्रों में किया गया है
. भूमि का आरम्भ 2. कूर्म न्यास 3. शिलान्यास
4. सूत्रपात (नल निर्माण) 5. खुर शिला स्थापन6. द्वार स्थापन 7. स्तम्भ स्थापन
8. पाट चढ़ाते समय 9. पद्म शिला स्थापन 10. शुकनास स्थापन 11. प्रासाद पूरूष स्थापन 12. आमलसार चढ़ाना 13. कलशारोहण
14. ध्वजारोहण
प्रासाद मंडन 4/36-37-38 यदि अपरिहार्य कारणों से चौदह अवसरों पर शांति पूजा न हो सके तो कम से कम पुण्याह सप्तक की सात पूजा अवश्य करें। निर्माण प्रारम्भ के पूर्व भूमि शुद्धि पूजन विधान
घर या मन्दिर निर्माण प्रारम्भ करने के लिए सर्वप्रथम शुभ मुहुर्त का चयन विद्वान प्रतिष्ठाचार्य से कर लेना चाहिए। मन्दिर निर्माण कर्ता, व्यक्तियों एवं समाज के परमपूज्य आचार्य परमेष्ठी से विनय पूर्वक मन्दिर निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए विधि पूर्वक निवेदन करना चाहिए। आर्शीवाद प्राप्त कर चतुर्विध संघ की उपस्थिति में समस्त समाज के साथ प्रभु के प्रति भक्ति भाव रखते हुए अभिमान आदि का कषाय विचारों को त्याग कर वास्तु निर्माण हेतु भूमि पूजन करना चाहिए। भूमि पूजन विधि के द्वारा वहां के निवासी देवों से इस सत्य कार्य को करने की अनुमति एवं सहयोग की प्रार्थना करना चाहिए। मन्दिर निर्माण कर्ता द्वारा अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक विनय गुण से सहित होकर भूमि पूजनादि कार्यों को सम्पन्न करने से कार्य निर्विघ्न होता है। इस अवसर पर प्रतिष्ठाचार्य एवं सूत्रधार का यथोचित सम्मान करना चाहिए। सर्वप्रथम मंगल द्रव्यों से वास्तु विधान मंडल बनायें। तदुपरांत वास्तु शांतिपूजन करें। इसके उपरान्त ही भूमि पर कार्य आरम्भ करें।