Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
गृह प्रवेश समय विचार
जिस घर में छत या छप्पर न हो, चौखट या दरवाजे स्थापित न किए हों तथा वास्तु पूजन न किया गया हो, उस घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। उस घर में वास करना उपयुक्त नहीं है।
जातु न प्रविशेदीमान्ननाच्छन्नं नवं ग्रहम् । कपाट रहितं तद्वद्वास्तुपूजनं वर्जितम् ।।
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ज्यो. म.
प्रवेश करते समय उपयुक्त मुहुर्त आदि का निर्धारण करके प्रवेश करना ही शुभफल प्रदायक होता है। प्रवेश चार प्रकार का है2. सपूर्व 3. द्वंद्वाभय 4. वधू
1. अपूर्व
नवीन गृह निर्माण के उपरांत वास्तु शांति पूजन सहित जो प्रवेश किया जाता है वह अपूर्व प्रवेश कहलाता है।
तीर्थयात्रा या इस प्रकार की कोई लम्बी यात्रा, प्रवास के उपरांत गृहप्रवेश को सपूर्व प्रवेश कहते हैं।
जल, अग्नि, भूकम्प आदि विपदाओं से मकान उध्वस्त हो जाने पर उसे ठीक करवाने के बाद उसमें प्रवेश करने को द्वंद्वाभय प्रवेश कहते हैं। विवाहोपरान्त नववधू के पतिगृह में प्रथम प्रवेश को वधू प्रवेश कहा जाता
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प्रवेश समय विचार
उत्तरायण में ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख माह में अपूर्व या सपूर्व प्रवेश कर सकते हैं। मुख्य गृह प्रवेश द्वार की दिशा के नक्षत्रों में अनुराधा, रेवती, मार्गशीर्ष, चित्रा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी नक्षत्र प्रवेश के लिए शुभ नक्षत्र माने गये हैं ।
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प्रत्येक दिशा के सात नक्षत्रों का ज्ञान सप्तशलाका चक्र एवं पंचांग से किया जाता है। प्रवेशकर्ता की जन्मराशि एवं जन्म लग्न से तीसरे, 6वें 10वें और 11वें लग्न में अथवा स्थिर लग्न में गृह प्रवेश किया जाना चाहिए। वृषभ, सिंह, वृश्चिक तथा कुम्भ स्थिर माने गए हैं।
मूला,
तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त, घनिष्ठा, शततारका, पुष्य, चित्रा, ये नक्षत्र वास्तुशांति के लिए शुभ माने गए हैं।