Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
वत्सबल प्रकरण वास्तु निर्माण कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व यह निर्धारण करना उपयोगी है कि कार्यारम्भ सही समय पर किया जाए। कार्यारम्भ करने के लिए मुहूर्त निर्धारण करने से पूर्व उसके वत्सबल का आकलन करना चाहिए। वत्सचक्र में जहां पर वत्स का मुख रहता है वहां पर खात मुहूर्त, प्रतिष्ठा, द्वारप्रवेश आदि कार्य नहीं करना चाहिए। वत्स प्रत्येक दिशा में तीन माह तक मुख रखता है तथा इतने समय तक कार्यारम्भ रोकना अनुपयुक्त है अतएव इसके लिए शास्त्रानुकूल वत्सचक्र का निर्माण करके तदनुसार कार्य करना चाहिए। वास्तुसार में वत्सचक्र का उल्लेख इस प्रकार है
तंजहा कन्नाइतिगे पव्वे वच्छ सहा दाहिंण धणाझंगा पश्छिमदिसि मीणतिगे मिहुतिगे उतरे हवइ।।1।। गिह भूमि सत्तभाए पण दह तिहि तीस तिहि दहवरवकमा। इअ दिणसंवा चउदिसि सिरपुच्छसमंकि वच्छठिई।।20।।
- वास्तुसार प्र.1 कन्या, तुला, वृश्चिक राशि का सूर्य होने पर वत्स का मुख पूर्व दिशा में रहता है। धनु, मकर, कुम्भ राशि का सूर्य होने पर वत्स का मुख दक्षिण दिशा में रहता है। मीन, मेष, वृषभ राशि का सूर्य होने पर वत्स का मुख पश्चिम दिशा में रहता है। मिथुन, कर्क, सिंह राशि का सूर्य होने पर वत्स का मुख उत्तर दिशा में रहता है। ___ वत्सचक्र बनाने के लिए भूमि प्रत्येक दिशा के सात भाग करें। प्रथम भाग में वत्स का मुख पांच दिन, दूसरे में दस दिन, तीसरे में पन्द्रह दिन, चौथे में बीस दिन, पांचवें में पन्द्रह दिन, छठवें में दस दिन तथा सातवें में पांच दिन रहता है। चारों भाग में इसी क्रम से दिन की संख्या जानना चाहिए। वत्स का जिस अंक पर मुख होता है ठीक उसी के सामने वाले अंक पर पूंछ रहती