Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
कृषि भूमि का वास्तु विचार Vaastu of Agriculture Land
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कृषि कर्म आजीविका उपार्जन के लिए तो है ही, जगत के प्राणियों के आहार की पूर्ति के लिए भी अनिवार्य है। प्रथम तीर्थंकर प्रभु आदिनाथ ऋषभदेव ने गृहस्थों के लिए छह कर्मों का निरूपण किया है
1. असि 2. मसि 3. कृषि 4. शिल्प 5 विद्या 6. वाणिज्य
अतएव कृषि कर्म यथा शक्ति आजीविका के लिए योग्य ही है। कहावत भी है
'उत्तम खेती, मध्यम बान, अधम चाकरी निश्चय जान' अर्थात् कृषि कार्य श्रेष्ठ कार्य है, वाणिज्य मध्यम तथा सेवा कार्य अधम कार्य है।
वर्तमान युग के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने इसी भावना को दृष्टिगत रखते हुए विश्व समुदाय को एक नया उद्बोधन दिया'ऋषि बनो या कृषि करो'
यदि संसार से विरक्त हो तो ऋषि बनो, यदि गृहस्थ धर्म का पालन करना है तो कृषि करो।
वर्तमान वैज्ञानिक युग में अनेकानेक नवीन अनुसंधान कृषि उपकरणों एवं बीजों के लिए चल रहे हैं। उनकी जानकारी अवश्य ही रखना चाहिए। कृषि कार्य मात्र अन्न उपार्जन का साधन न बने वरन् लाभकारी उपक्रम के रूप में करना श्रेयस्कर है।
एक विशेष बात ध्यान में रखें कि आजकल मछली पालन, मुर्गी आदि को कृषि कार्य में गिना जाने लगा है, किन्तु यह यथार्थ से विरुद्ध है। जीवित प्राणियों को वृद्धि कर मांसाहार के लिए बेचना, कृषि नहीं, वरन् महान हिंसक कर्म है। इससे बचना चाहिए।
कृषि भूमि का वास्तु विचार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना भूस्वामी के लिये हितकारी होता है