Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
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वास्तुसार प्र. 1 गा. 51
चारों तरफ नींव की भूमि ( अर्थात् दीवार करने की भूमि) को छोड़कर मध्य में जो भूमि है उसकी लम्बाई चौड़ाई गृहस्वामी के हाथ से नापकर उसका आपस में गुणा कर क्षेत्रफल निकालना चाहिए। इसमें आठ का भाग देने पर शेष राशि से ध्वज आदि आय जानना चाहिए।
राज वल्लभ में विवेचन है कि
मध्ये पर्यंकासने मन्दिरे च देवागारे मंडपे भित्तिबाहो । पलंग, आसन और घर इनके मध्य की भूमि को नापकर आय का आकलन करना चाहिए। देवमन्दिर तथा मंडप में दीवार करने की भूमि सहित नापकर आय का आकलन करना चाहिए।
क्रं.
1
34
5
a
वास्तु की आय
हिसामिणो करेण भित्तिविणा मासु वित्थरं दीहं । गुणि अट्ठेहिं विहत्तं सेस धयाई भवे आया । ।
7
8
आय का नाम
ध्वज
धूम्र
सिंह
श्वान
वृष
खर
गर्ज
ध्वांक्ष
दिशा
पूर्व
आग्नेय
दक्षिण
नैऋत्य
पश्चिम
वायव्य
उत्तर
ईशान
209
फल
शुभ
अशुभ
शुभ
अशुभ
शुभ
अशुभ
शुभ
अशुभ
आय से द्वार का निर्धारण
सर्वद्वार इह ध्वजो वरुण दिग्द्वारं च हित्वा हरिः । प्राग्द्वारो वृषभो गजो यमसुरे शाशामुखः स्याच्छुभः ।। पीयूषधारा टीका
ध्वज आय आने पर पूर्वादि चारों दिशाओं में द्वार रख सकते हैं। सिंह आय आने पर पश्चिम छोड़कर शेष तीन दिशाओं में द्वार रखें। वृषभ आय आने