Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
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वास्तु का आयु विचार मनुष्यों एव अन्य प्राणियों की आयु हो उनकी जीवनसीमा होती है। साधारण रूप में मनुष्यों की औसत आयु साठ से सत्तर साल मानी जाती है। इसी प्रकार इमारतों तथा अन्य वास्तु निर्माण की भी आय मर्यादा का निर्धारण किया जा सकता है। जिस प्रकार मनुष्य की आयु मर्यादा समाप्त होने पर उसका जीवन समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार वास्तु निर्माण की आयु सीमा समाप्त होने पर उसकी शक्ति समाप्त होने लगती है। वर्तमान में भी पुलों एवं बांधों की आयु सीमा समाप्त होने की बात सुनने में आती है। आयु सीमा समाप्त होने पर वास्तु की शक्ति वृद्धि करने के लिये उसका पुनर्निर्माण अथवा जीर्णोद्धार किया जाना आवश्यक है। ऐसा न किये जाने पर वह वास्तु हानिकारक अथवा निरर्थक हो सकती है।
जीर्णोद्धार अथवा पुनर्निर्माण करने के उपरांत उसका वास्तु शांति के निमित्त, वास्तुशांति विधान एवं पूजा होना आवश्यक है। यदि यह संभव न हो तो इस निमित्त शांति विधान कर ही लेना चाहिये। ऐसा करने से वास्तु का परिणाम सुख शांति कारक होता है।
आयु सीमा का निर्धारण विश्वकर्मा प्रकाश एवं मंडन सूत्रधार आदि में लिखित विधियों से किया जा सकता है।
गृहस्थ पिंडम् करिभिर्विगुणयं विभाजितं शून्य दिवाकरेण। यच्छेषमायुः कथितं मुनीन्द्ररायुस्य पूर्णो भवनं शुभं स्यात्।। जिस वास्तु की आयु मर्यादा पूरी हो गई है वह भूमि तथा वास्तु निर्माण कार्य के लिये शुभ कारक है। ऐसे स्थान पर वास्तुनिर्माण या जीर्णोद्धार करके उसकी वास्तु शाति करना चाहिये, तदुपरांत उसका प्रयोग करना चाहिये। यदि आयु समाप्त होने के पश्चात् भी उसका प्रयोग बगैर किसी जीर्णोद्धार आदि के किया जायेगा तो वह निवासी के लिए पीडाकारक होती है।
आयुर्विहीने गेहे तु दुर्भगत्वं प्रजायते। ऐसी वास्तु जिसकी आयु मर्यादा समाप्त हो गई है, उसमें निवास करने वालों को दुख, क्लेश की प्राप्ति होती है तथा दुर्दैव का आगमन होता है।