Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
स्वास्थ्य, मानसिक शांति, लौकिक सुख की प्राप्ति तो होती है साथ ही पारमार्थिक श्रद्धा में स्थिरता भी आती है। धन-धान्य, पुत्रादि की प्राप्ति होती है। तृतीय भाग में द्वार से धन प्राप्ति तथा चतुर्थभाग में द्वार से राज सम्मान एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
दक्षिण द्वार - इसे यम द्वार कहते हैं। इसे अशुभ माना जाता है। अनायास ही अशुभ घटनाएं यथा वाहन दुर्घटना, व्यसन, बीमारी, आर्थिक हानि आदि इसके कारण होती है। अतः दक्षिण में मुख्य प्रवेश द्वार न बनाएं। यदि द्वार बनाना अपरिहार्य हो तो दूसरे एवं छठवें भाग में बनाना चाहिए।
एक अन्य मतानुसार चतुर्थ, पंचम या षठ भाग में दक्षिण द्वार बना सकते हैं। चतुर्थभाग में पुत्र प्राप्ति, पंचम में धनप्राप्ति तथा षष्ठम में यश प्राप्ति होती है।
यम द्वार
पश्चिम द्वार इसे मकर द्वार कहते हैं । यह मध्यम फल दायक है। इसके कारण शोक, दुख, स्त्रीरोग, कलुषित मनोवृत्ति होती है। अन्यथा रीतियों से धनागमन होने पर भी धन स्थिरता को प्राप्त नहीं होता। पश्चिम में द्वार बनाना अपरिहार्य होने पर तीसरे या पांचवे भाग में बनाना उपयुक्त है।
अन्य मतानुसार पश्चिम दिशा के आठ भागों में से तीसरे, चौथे, पांचवें या छठवें भाग में घर बना सकते हैं। तीसरे भाग में दरवाजा बनाने से धनप्राप्ति, चतुर्थ भाग से धनागम, पंचम भाग से सौभाग्य प्राप्ति तथा छठवें भाग से धन लाभ होता है।
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मकर द्वार
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उत्तर द्वार - इस द्वार को कुबेर द्वार कहते हैं। इससे व्यापारी वृत्ति, सत्य भाषण, हितमित वचन, व्यवहार, प्रगति एवं धनवृद्धि होती है। इसके तीसरे या पांचवें भाग में द्वार निर्माण उपयुक्त है।
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