Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
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की जाती थी। वर्तमान आधुनिक शौचालयों को दक्षिणी अग्नेय अथवा पश्चिमी वायव्य में ही निर्माण करना उचित है। यदि दक्षिणी आग्नेय दिशा में शौचालय बनाना हो तो उसे घर की दीवाल छोड़कर परकोटे की दीवार से लगकर बनवाना चाहिए।
अथ मूत्र पुरीषोत्सर्गत विधिदिवासंध्यायोरुदगमुखो रात्रौ दक्षिणामुखौ
मौनी अनुपानत्कआसिनो मूत्रपुरीषोत्सर्गम् कुर्यात्। दिन में तथा संध्या काल यानी प्रात: एवं संध्या समय में उत्तराभिमुख तथा रात्रि में दक्षिणाभिमुख होकर मलमूत्र विसर्जन करना श्रेयस्कर है। विसर्जन करते समय दोनों पांव में समतल रखना चाहिए, ऊपर नीचे नहीं। सूर्य के सम्मुख बैठ कर मल विसर्जन न करें।
दिशानुसार शौचालय बनाने का फल क्र. | दिशा | परिणाम | 1 | पूर्व । द्यूत व्यसन, शारीरिक रोग
2 | आग्नेय | अधिकार प्राप्ति, राज सम्मान, यश 3 | दक्षिण मानसिक अस्थिरता, चंचल बुद्धि, रक्तवाहिनी नसों
में दोष 4 | नैऋत्य | मध्यम, कदाचित आत्मघात घटना | 5 | पश्चिम | स्त्रियों में चंचल वृत्ति
आरोग्य, सुख, कदाचित चौर भय | 7 | उत्तर | आर्थिक हानि, दरिद्रता
| ईशान । वंशनाश, गर्भपात, मानसिक चिन्ता, अपयश
वायव्य
शौचालय निर्माण में महत्त्वपूर्ण संकेत ऐसे भूखण्ड जिनमें पश्चिम एवं उत्तर में सड़क हो, उन पर निर्मित मकानों में यदि पश्चिम में शौचालय अथवा स्नानगृह बनाना अपरिहार्य हो तो उसका भूमिगत जल संग्रह मध्य उत्तरी भाग में रखें।