Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
गृह चैत्यालय में पुष्पक विमान के समान आकार का काष्ठ का मन्दिर बनाना चाहिए। उस चैत्यालय में पीठ, उपपीठ तथा उस पर समचौरस (वर्गाकार) फर्श बनाना चाहिए। चारों कोणों पर चार स्तम्भ, चारों दिशाओं में चार द्वार, चारों ओर तोरण, चारों ओर ध्वजा, ऊपर कनेर के पुष्प के सरीखे पांच शिखर (चारों कोनों पर चार गुमटी तथा बीच में गुम्बज) बनाना चाहिए। . कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार गृह चैत्यालय एक, दो या तीन द्वार का तथा एक ही गुमटी या शिखर वाला भी 14 जा स...ा है:
गर्भगृह से छज्जा का विस्तार 5:4 या 4:3 अथया 3:2 होना चाहिए। गर्भगृह के विस्तार से उदय सवाया तथा निर्गम आधा बनाना चाहिए।
शिखर बद्ध लकड़ी का मन्दिर गृह चैत्यालय में बनाना, पूजना या रखना उपयुक्त नहीं है। किन्तु तीर्थयात्रा के समय मार्ग में जिनबिम्ब दर्शन हेतु साथ में ले जाना उचित है।
गिह देवालय सिहरे धयदंड नो करिज्जइ कयावि। आमलसारं कलसं कीरइ इअ भणिय सत्थेहिं।।
- वास्तुसार प्र. 3 गा. 68 गृह चैत्यालय के ऊपर ध्वजदंड कभी नहीं चढ़ाना चाहिए। किन्तु आमलसार कलश ही करना चाहिए (कदाचित् कलश चढ़ा सकते हैं)।
गृह चैत्यालय की पीठ वास्तु की ओर नहीं आना चाहिए। यह दोष परिवार को तन-मन-धन । तथा जन की हानि कराता है। गृह चैत्यालय में स्थापित की
आमलसार जाने वाली तीर्थंकर की मूर्ति गृहपति की राशि के अनुकूल होना चाहिए।
दीवाल और छज्जा सहित गृह चैत्यालय ध्वज, वृषभ या मज आय के अनुकूल ही बनाना चाहिए। .
आय का ज्ञान और नाम गिहसामिणो करेणं भित्तिविणा मिणसु वित्थरं दी। गणि अट टेहि विहत्तं सेस धयाई भवे आया।। धय धूम सीह साणा विस खर गय धंख अट्ट आय इमे। पूव्वाइ - धयाइ -ठिई फलं च नामाणुसारेण।।
___ - वास्तुसार प्र. ! गा. 57-52