Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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तल के उतार एवं जल बहाव की दिशा का फल
क्रं. दिशा
परिणाम
पूर्व
आयु, बल वृद्धि, ऐश्वर्य लाभ, राज सम्मान, पारिवारिक सुख समृद्धि
स्त्री रोग, अग्निभय, शत्रु संताप, क्लेश, दुख
धनहानि,
1.
2.
3.
मृत्युभय, रोग
चोरभय, धननाश, रोग, जनहानि
धन-धान्य हानि, रोग, शोक, संताप कुलनाश, स्त्री मृत्यु, शत्रुवृद्धि, चिन्तावृद्धि
पुत्र, धन, भोग, व्यापार, सुख में वृद्धि
सुख, सौभाग्य, धन, ऐश्वर्य लाभ, वंशवृद्धि, धर्मवृद्धि इस प्रकार वास्तु निर्माण के समय तल एवं जल बहाव की दिशाओं का ध्यान रखना अति महत्त्वपूर्ण है।
पंचम शिल्प रत्नाकर ग्रंथ में उल्लेख है
4.
5.
6.
7.
आग्नेय
दक्षिण
नैऋत्य
पश्चिम
वायव्य
उत्तर
ईशान
8.
वास्तु चिन्तामणि
अलिन्दाश्चैवलिन्दाश्च वामतन्त्रानुसारतः । वाद्य द्वारं तु कर्तव्यं किंचिन्न्यूनाधिकं भवेत् । ।
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पंचम शिल्प रत्नाकर गा. 166
घर के कमरे से उसके आगे का दालान नीचे की ओर होना चाहिए तथा उस दालान से आगे का परसाल नीचा करना चाहिए। इसी प्रकार आगे जितने भी कमरे या खंड हों वे नीचे ही करने चाहिए, ऊंचे नहीं ।
धरातल के शुभाशुभ परिणामों का विचार करने के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न दिशाओं में उनके आपेक्षिक चढ़ाव एवं उतार का विचार किया जाए। अष्ट दिशाओं में चढ़ाव का परिणाम विभिन्न दिशाओं में निम्न सारणी के अनुरूप शुभाशुभ होता है