Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
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पश्चिमी भाग में दीवाल से सटकर बनाना चाहिए। उत्तर या पूर्व में यदि बनाना आवश्यक हो तो दीवाल से दूर हटकर बनाएं। कभी-कभी वास्तु दोषों को निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक हो जाता है। इसके लिए निम्न संकेत महत्त्वपूर्ण हैं
1. भूखण्ड का विस्तार यदि उत्तर से दक्षिण को ओर हो तथा वास्तु निर्माण उत्तरी भाग में किया गया हो एवं दक्षिणी भाग रिक्त रखा गया हो तो दोष निवारण हेतु नैऋत्य में पिछवाड़े में सेवक का आवास गृह बनाए। इसका फर्श मूल वास्तु निर्माण से ऊंचा हो तथा इसका दरवाजा दक्षिण एवं पश्चिम में कदापि न हो। (चित्र सं-1)
सेवक गृह ___2. भूखण्ड का विस्तार यदि पश्चिम से पूर्व की ओर हो तथा वास्तु निर्माण पूर्वी भाग में किया गया हो तथा पश्चिमी भाग रिक्त रखा गया हो तो दोष निवारण हेतु नैऋत्य में पिछवाड़े में सेवक का आवास गृह बनवायें। उक्त सेवक गृह का फर्श मूल गृह के फर्श से नीचा न हो तथा दक्षिण में द्वार न हो। (चित्र सं-2)
चित्र सं-2
3. भूखण्ड का विस्तार यदि उत्तर से दक्षिण की ओर हो तथा सड़क सिर्फ उत्तर की ओर हो और वास्तु निर्माण उत्तरी सीमा पर दक्षिणी भाग को रिक्त रखते हुए किया गया हो तो दोष निवारण के लिए कुछ उत्तरी भाग
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