Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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16. एकदम छोटा दरवाजा कुल का नाश करता है।
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ऊपर की मंजिल के दरवाजे एक के ऊपर एक नहीं होना चाहिए। दरवाजा एक तरफ चौड़ा तथा दूसरी तरफ संकरा होने से भय निर्माण होता है।
19.
दरवाजा अत्यधिक ऊंचा या अत्यधिक चौड़ा होने पर घर में भय निर्माण, अकारण चिन्ता, स्वास्थ्य हानि तथा अचानक धनहानि होती है। घर के मुख्य दरवाजे के सामने किसी अन्य का दरवाजा अशुभ होता है।
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वास्तु चिन्तामणि
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24.
घर में आने जाने का एक ही दरवाजा होने से परेशानियां बढ़ती हैं। घर का मुख्य प्रवेशद्वार सुन्दर एवं सुसज्जित होने पर समृद्धिदायक तथा आनन्दकारी होता है। प्रवेश द्वार के समान अन्य द्वारों की सजावट न करें ।
23. पूरी वास्तु निर्माण में दरवाजे सम संख्या में हों किन्तु दशक में न हों अर्थात् 2, 4, 6, 8, 12, 14, 16 हों किन्तु 10, 20, 30 आदि न हों। घर के दरवाजे के सामने पेड़, खंभा, कुंआ न हो अन्यथा घर में निरन्तर परेशानियां बनी रहेंगी।
25. दरवाजा एक ही लकड़ी का बनवाएं। लोहे का दरवाजा हो व लकड़ी की चौखट हो ऐसा न हो। इसी प्रकार लकड़ी का दरवाजा व लोहे की चौखट हो ऐसा भी न हो ।
26. बिना द्वार की वास्तु का निर्माण नेत्रहीन करता है।
27. इनके अतिरिक्त वास्तुसार की प्र. 1 गा. 136 में उल्लेख है
सयमेव जे किवाड़ा पिहियंति य उग्घडंति ते असुहा चित्तकलसाइसोहा सविसेसा मूलदारि सुहा ।।
यदि घर के द्वार स्वयंमेव खुलें यां बंद होवे तो यह अशुभ समझें। घर का मुख्य द्वार कलश आदि से शोभायमान हो तो अति शुभकारी है। गृह का मुख्य द्वार स्वस्तिक, त्रिलोक प्रतीक आदि प्रशस्त चित्रों से शोभायमान हो तो शुभ है।