Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
___49 उपरोक्त के अतिरिक्त शांतन आदि 64 भेद भी हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं1. शांतवन | 17. बंधुद | 33. श्रीधर
49. विलाश 2. शान्तिद | 18. पुत्रद 34. सर्वकामद
50. बहुनिवास 3. वर्धमान | 19. सर्वांग 35. पुष्टिद
51, पुष्टिद 4. कुक्कुट ! 20. कालचक्र 36. कीर्तिनाशक
52. क्रोधसन्निभ| 5. स्वस्तिक | 21. त्रिपुर 37. श्रृंगार
53. महन्त 6. हंस 22. सुन्दर 38. श्रीवास
54. महित 7. वर्धन 23. नील 39. श्रीशोभ
55. दुख 8. कडूर 24, कुटिल 40. कीर्तिशोभन
56. कुलच्छेद 25. शाश्वत 41. युग्मशिखर
57. प्रतापवर्धन हर्षण 26. शास्त्रद 42. बहुलाभ
58. दिव्य 1. विपुल 27. शील 43. लक्ष्मीनिवास
59. बहुदुख 12. कराल 28. कोटर
44, कुपित
60. कण्ठछेदन 13. वित्त 29. सौम्य 45. उद्योत
61. जंगम 14. चित्र 30. सुभद्र
46. बहुतेज
62. सिंहनाद 15. धन | 31. भद्रमान 47. सुतेज
63. हस्तिज 16. कालदंड । 32. क्रूर 48, कलहावह
64. कण्ठक
शान्त
इस प्रकरण में कुछ समानार्थी एवं पारिभाषिक शब्दों को जान लेना उपयुक्त है1. ओरडे या कमरे को शाला कहते हैं। 2. जिसमें एक या दो कमरे हों उसे घर कहते हैं। 3. घर के आगे की दालान को अलिन्द कहते हैं। इसे गड् भी कहते हैं। 4. जिसमें एक, दो या तीन दालान हो तो उसे पाठशाला कहते हैं। 5. पाठशाला के द्वार के दोनों तरफ खिड़की (झरोखा) युक्त दीवार और
मण्डप होता है। पिछले भाग में तथा दाहिनी और बायीं ओर जो अलिन्द
हो उसे गुंजारी कहते हैं। 6. मूषा या जालिय का तात्पर्य छोटा दरवाजा है। 7. खंभे का अन्य नाम षदारु है।