Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
वास्तु के प्रकार: प्राचीन सिद्धांत Kinds of Vaastu : Oriental Concepts
वास्तुसार के अनुसार शाला, अलिंद, गुंजारी, दीवार, पट्टे, स्तम्भ, झरोखा एवं मंडप आदि के भेद से 16384 प्रकार के घर बनते हैं। इन सबके नाम वर्तमान में नहीं मिलते हैं किन्तु धुवादि- शांतनादि गृहों के नाम शास्त्रों में उपलब्ध हैं।
धुवादि सोलह भेदों का वर्णन इस प्रकार हैजिस प्रकार चार गुरु अक्षर वाले छन्द के सोलह भेद होते हैं उसी प्रकार घर के प्रदक्षिणा क्रम से लघुरूप शाला द्वारा ध्रुवधान्यादि सोलह घर बनते हैं। (1) के स्थान पर शाला तथा गुरु (5) के स्थान पर दीवार समझना चाहिए। जैसे प्रथम चारों ही अक्षर गुरु हैं तो घर के चारों ही दिशा में दीवार है अर्थात् किसी दिशा में कोई शाला नहीं है। प्रस्तार के दूसरे भेद में प्रथम लघु है। यहां दूसरा धान्य नाम के घर की पूर्व दिशा में शाला समझनी चाहिए। तीसरे भेद में दूसरा लघु है यहां तीसरे जय नाम के घर के दक्षिण में शाला है। चौथे भेद में पूर्व और दक्षिण में एक एक शाला है।
ध्रुव १ धान्य २ जय ३ नेद ४
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