Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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वास्तु चिन्तामणि
वेध प्रकरण वेध का आशय बाधा से है। इनके सात प्रकारों का नामोल्लेख यहां किया जा रहा है। निर्माण की गई वास्तु में किसी का भा जेध नहीं माना जाहिए। मुख्य प्रवेशद्वार के समक्ष किसी मार्ग, द्वार, कूप, वृक्ष, स्तंभ आदि का होना अथवा यथोचित स्थान पर परिमाण सहित न होना वेध कहा जाता है। वेध
ये हैं
1. तल वेध 2. कोण वेध 3. तालू वेध 4. कपाल वेध 5. स्तंभ वेध 6. तुला वेध 7. द्वार वेध
तल वेह कोणवेहं तालुयवेहं कघालवेहं च। तह थंभ तुलावेहं दुवारवेहं च सत्तमयं।।
वास्तुसार प्र. ! गा. 11611 । तल वेध - वास्तु की भूमि कहीं सम कहीं विषम हो अथवा द्वार के
सामने कुंआ हो, तेल निकालने की धानी हो, पानी का रहट' हो, गन्ने का रस निकालने का यंत्र हो, कुंए या दूसरे के घर का रास्ता अपने घर से जाता हो तो वह तलवेध कहलाता है। ऐसा होने से घर में रोग, सफेददाग की बीमारी, चर्मरोग, कुष्ठरोग, आदि रोगों का आगमन होता
2. कोण वेध - घर के कोने यदि समकोण 90 अंश के समान न होकर
कम ज्यादा हों तो कोण वेध होता है। घर के निवासी परिवारजनों में अशुभं घटना, परेशानियां, वाहन दुर्घटना
आदि की आशंका रहती है। ३. तालु वेध - एक ही खंड में पीढ़े ऊंचे-नीचे होने पर तालुवेध होता है।
__इससे चोरी का भय होता है। 4. शिर वेध - द्वार के ऊपर की पटरी पर गर्भ यानी मध्य भाग में पीढ़ा
आये तो शिर वेध होता है। इससे घर में दरिद्रता तथा शारीरिक, मानसिक क्लेश होता है।