Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
View full book text
________________
वास्तु चिन्तामणि
ॐ णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं,
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं। चत्तारि मंगलं अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं,
केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा,
साहू लोगुत्तमा, केवलि पपणत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि। अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलि पण्णत्तो धम्म सरणं पव्वज्जामि।
ह्रौं शांति कुरु कुरु स्वाहा।। उपरोक्त मंत्र से मंत्रित करके बातियों को जला दीजिए। यदि बातियां घी समाप्त होने तक जलती रहें तो भूमि शुभ समझना चाहिए यदि वे बातियां घी समाप्त होने से पूर्व ही बुझती सरीखी लगें तो भूमि भवननिर्माता के लिए अशुभ एवं पीड़ा का कारण होगी।
भूमि परीक्षा विधि क्रं. 7 पांशवो रेणुतां नीत्वा, निरीक्षेदन्तरिक्षगाः। अधो मध्योर्ध्वगा: नृणां गति तुल्य फलप्रदाः।।
विश्वकर्मा प्रकाश पृ. 11 जिस भूमि पर वास्तु निर्माण करना है, उस भूमि की धूलि को जोर से आकाश में फेंककर परीक्षण करें। यदि भूमि की धूलि नीचे की ओर जाती है तो भूस्वामी की अवनति होगी। यदि धूलि मध्य में रुक जाती है तो भूस्वामी यथास्थिति ही रहता है, प्रगति नहीं करता। यदि ऊपर की ओर जाती है तो भूस्वामी की उन्नति होगी।
इस प्रकार वास्तु निर्माण के पूर्व ही भूमि की परीक्षा कर लेना अत्यन महत्वपूर्ण है। यदि उपयुक्त भूमि पर जिनालय अथवा भवन निर्माण कराया जावे तो वे उसमें वास करने वालों को दीर्घ काल तक सुख दायक होंगे।