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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
‘तिन्निवा’गाथा चैत्यवंदना की विधि की प्रतिपादक नहीं । 'तिन्निवा' गाथा साधुओं को जिनमंदिर में अधिक न रुकने की आज्ञा देनेवाला सूत्र है । अथवा चैत्यवंदन के अंतमें प्रणिधानार्थ तीन श्लोक प्रमाण स्तुति कही जाएं तब तक रुकने के लिए कहनेवाला सूत्र है। इससे अधिक न रुकें, यह भी साथ में कहता है।
'तिन्निवा' गाथागत 'वा' शब्द वैकल्पिक व्यवस्था दर्शाता है । अर्थात् इस सूत्र से यह सूचित होता है कि, सम्पूर्ण चैत्यवंदन करे अथवा तीन स्तुतियां कहे।
‘तिन्निवा' गाथा; चैत्यवंदन में तीन थोय ही कहें, ऐसा साक्षात् अथवा परोक्ष सूचन नहीं करती।
इससे प्रतिफलित होता है कि, 'तिन्निवा' व्यवहार भाष्य की गाथा को आगे करके त्रिस्तुतिक मतवाले अपने मतकी पुष्टि करते हैं, यह अर्थघटन असत्य है। इसलिए 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ- २३ पर जो प्रश्नोत्तरी है, वह शास्त्रविरोधी है, यह सिद्ध होता है ।
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प्रश्न : 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ- २३ पर कौन सी प्रश्नोत्तरी है ?
उत्तर : 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ - २३ पर निम्नलिखित प्रश्नोत्तरी है ।
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“पांच दण्डक से होनेवाले देववंदन में चार स्तुतियां आती हैं । तो यहां तीन स्तुतियां कैसे कहते हैं ?
★ कुछ लोग तीन स्तुतियों को ही मानते हैं। चतुर्थ स्तुति नई बनाई मानते हैं। इसलिए यहां तीन स्तुतियों के माननेवालोंके प्रमाण से तीन स्तुतियां कही गई हैं।
किस आधार पर वे तीन स्तुतियों को मानते हैं ?