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ताओ उपनिषद भाग ४
था! वह सम्राट अपने संस्मरणों में लिखवाया है कि मुझे भरोसा नहीं आता कि मैंने जो देखा वह सत्य था या स्वप्न। क्योंकि मेरे पास सब कुछ है और मैं इतना आनंदित नहीं हूं और उस रात सिर्फ रोटी पर मक्खन था और वे सब इतने आनंदित थे!
जो है उसमें सुख लेने की कला संतोष है। संतोष का मतलब समझ लें। संतोष कोई अपने आपको समझा लेना नहीं है, कोई कंसोलेशन नहीं है, कि अपने मन को समझा लिया कि नहीं है अपने पास तो अब उसकी क्या मांग करना। जो नहीं है वह नहीं है, जो है इसी में भगवान को धन्यवाद दो। वैसे मन में लगा ही है कि वह होना चाहिए था। क्योंकि जो नहीं है, उसका भी क्या विचार करना? जो नहीं है उसका कोई विचार नहीं, और जो है उसका रस; उस रस में लीन हो जाने से संतोष जन्मता है। और संतोष सुख है, संतोष धन है।
असंतुष्ट सदा निर्धन है, उसके पास कितना ही हो; क्योंकि वह जो है उसका तो हिसाब ही नहीं रखता, वह तो जो नहीं है उसका हिसाब रखता है। तो असंतुष्ट सदा निर्धन है, क्योंकि अभाव का हिसाब रखता है, वह जो नहीं है उसका हिसाब है। संतुष्ट धनवान है, क्योंकि वह उसका ही हिसाब रखता है जो है। और जो है वह इतना है कि आपने कभी उसका हिसाब नहीं रखा, इसलिए आपको पता नहीं है।
सुना है, एक सूफी फकीर से एक युवक ने कहा कि मैं आत्महत्या कर लेना चाहता हूं, क्योंकि जिंदगी में कोई रस नहीं; मेरे पास कुछ भी नहीं है। उस फकीर ने कहा, तू घबड़ा मत। एक सम्राट से मेरी पहचान है। और जो तेरे पास है, तुझे परख नहीं, लेकिन मुझे परख है; मैं बिकवा दूंगा। उसने कहा कि मेरे पास कुछ है ही नहीं, बिकवा क्या देंगे? देखते हैं, खाली हूं बिलकुल, झोला भी मेरे पास नहीं है जिसमें कुछ रख सकू। उसने कहा, तू फिक्र न कर, मेरे साथ आ। वह उसे महल के दरवाजे पर ले गया। भीतर से लौट कर आया और उसने कहा कि एक लाख अगर दिलवा दूं तो क्या खयाल है? पर उसने कहा कि बेच कौन सी चीज रहे हैं? उस सूफी फकीर ने कहा कि तेरी आंखों का सौदा कर आया हूं। सम्राट कहता है, एक लाख में खरीद लेंगे दोनों। उसने कहा, क्या कहते हैं? आंख? वह दस लाख में भी मांगता हो तो मैं बेच नहीं सकता हूं। वह सूफी फकीर कहने लगा, अभी तू .. कह रहा था मेरे पास कुछ है नहीं और अब तू दस लाख में आंख बेचने को तैयार नहीं है। मैं तेरा कान भी बिकवा सकता हूं, तेरे दांत भी बिकवा सकता हूं; और भी कई चीजें हैं जो मैं बिकवा सकता हूं। तू बोल, ग्राहक मेरी नजर में हैं सब तरफ। करोड़ों रुपए के ढेर लगवा दूंगा तेरे पास। उस आदमी ने कहा कि तू और खतरनाक है। इससे तो मैं मर जाता वह बेहतर था। आपसे कहां मेरी मुलाकात हो गई।
आपके पास जो है उसका आपको तब तक पता नहीं जब तक वह छीन न लिया जाए। यह बड़े मजे की बात है। आपकी आंख चली जाए, तब आपको पता चलता है आंख थी। कई लोगों को मर कर पता चलता है कि हम जिंदा थे; उसके पहले उनको पता ही नहीं चलता। जो आपके पास है वह दिखता ही नहीं, उसका हिसाब ही नहीं। वह हमारी आदत ही नहीं है।
संतोष का अर्थ है: जो है उसका रस, उसका बोध। असंतोष का अर्थ है: जो नहीं है उसका रस, उसका बोध। और संतोष धन है।
'और जो दृढ़मति है वह संकल्पवान है। ही हू इज़ डिटरमिंड हैज स्टेंग्थ ऑफ विल।'
जो निश्चय करने की क्षमता रखता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि निश्चय क्या है। निश्चय की क्षमता! आपके पास बिलकुल निश्चय की क्षमता नहीं है। अगर आप यह भी निश्चय करें कि इस अंगुली को पांच मिनट तक सीधा रखेंगे, आप हजार दफे हिला लेंगे। इतना भी कि एक दो मिनट मैं आंख खुली रखूगा, तो बस आंख जवाब देने लगेगी। आप हजार कारण निकाल लेंगे और आंख को झपका लेंगे।
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